पृष्ठ:हिंदी साहित्य का इतिहास-रामचंद्र शुक्ल.pdf/५०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
४८१
गद्य-साहित्य-परंपरा का प्रवर्त्तन

१ बालदीपक ४ भाग (नागरी और कैथी अक्षरों में), २ विक्टोरिया-चरित्र। ये दोनों पुस्तकें खड्गविलास प्रेस, बाँकीपुर में छपी थीं। 'बालदीपक' बिहार के स्कूलों में पढ़ाई जाती थी। उसके एक पाठ का कुछ अंश भाषा के नमूने के लिये दिया जाता है––

"हे लडको! तुमको चाहिए कि अपनी पोथी को बहुत सँभाल कर रखो। मैली न होने पावे, बिगड़े नहीं और जब उसे खोलो चौकसाई से खोलो कि उसका पन्ना अँगुली के तले दबकर फट न जावे।"

'विक्टोरिया-चरित्र' १३६ पृष्ठों की पुस्तक है। इसकी भाषा उनके पत्रों की भाषा की अपेक्षा अधिक मुहावरेदार है।

उनके विचार उनके लंबे लंबे पत्रो में मिलते हैं। बाबू कार्तिकप्रसाद खत्री को सं॰ १९४३ के लगभग अपने एक पत्र में वे लिखते हैं––

"आपका सुखद पत्र मुझको मिला और उससे मुझको परम आनंद हुआ।

आपकी समझ में हिंदी भाषा का प्रचलित होना उत्तर-पश्चिम-वासियों के लिये सबसे भारी बात है। मैं भी संपूर्ण रूप से जानता हूँ कि जब तक किसी देश में निज भाषा और अक्षर सरकारी और व्यवहार सबधी कामों में नहीं प्रवृत्त होते हैं तब तक उस देश का परम सौभाग्य हो नहीं सकता। इसलिये मैंने बार बार हिंदी भाषा के प्रचलित करने का उद्योग किया है।

देखो, अस्सी बरस हुए बंगाली भापा निरी अपभ्रंश भाषा थी। पहले पहल थोड़ी-थोड़ी संस्कृत बाते उसमें मिली थी। परंतु अब क्रम करके सँवारने से निपट अच्छी भाषा हो गई। इसी तरह चाहिए कि इन दिनों में पंडित लोग हिंदी भाषा में थोड़ी-थोड़ी संस्कृत बाते मिलावें। इस पर भी स्मरण कीजिए कि उत्तर-पश्चिम में हजार बरस तक फारसी बोलनेवाले लोग राज करते थे। इसी कारण उस देश के लोग बहुत फारसी बातों को जानते हैं। उन फारसी बातों को भाषा से निकाल देना असंभव है। इसलिये उनको निकाल देने का उद्योग मूर्खता का काम है।"

हिंदुस्तानी पुलिस की करतूतों को सुनकर आपने बा॰ कार्तिकप्रसाद को लिखा था––

"कुछ दिन हुए कि मेरे एक हिंदुस्तानी दोस्त ने हिंदुस्तान के पुलिस के जुल्म की

३१