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हिंदी-साहित्य का इतिहास

कवियो का कुछ इतिवृत्त-संग्रह पहले पहल संवत् १८९६ में गार्सा द तासी ने अपने "हिंदुस्तानी साहित्य का इतिहास" में किया, फिर सं॰ १९४० में ठाकुर शिवसिंह सेंगर ने अपने "शिवसिंह सरोज" में किया। उसके पीछे प्रसिद्ध भाषावेत्ता डाक्टर (पीछे सर) ग्रियर्सन ने संवत् १९४६ में Modern Vernacular Literature of Northern Hindustan प्रकाशित किया। कवियों का वृत्त भी साहित्य का एक अंग है। अतः सभा ने आगे चलकर हिंदी पुस्तकों की खोज का काम भी अपने हाथ में लिया जिससे बहुत से गुप्त और अप्रकाशित रत्नों के मिलने की पूरी आशा के साथ साथ कवियों का बहुत कुछ वृत्तांत प्रकट होने की भी पूरी संभावना थी। संवत् १९५६ में सभा को गवर्मेंट से ४००) वार्षिक सहायता इस काम के लिये प्राप्त हुई और खोज धूमधाम से आरंभ हुई। यह वार्षिक सहायता ज्यों ज्यों बढ़ती गई त्यों त्यों काम भी अधिक विस्तृत रूप में होता गया। इसी खोज का फल हैं कि आज कई सौ ऐसे कवियों की कृतियों का परिचय हमें प्राप्त हैं जिनका पहले पता न था। कुछ कवियों के संबंध में बहुत सी बातों की नई जानकारी भी हुई। सभा की "ग्रंथमाला" में कई पुराने कवियों के अच्छे अच्छे अप्रकाशित ग्रंथ छपे। सारांश यह कि इस खोज के द्वारा हिंदी साहित्य का इतिहास लिखने की खासी सामग्री उपस्थित हुई जिसकी सहायता से दो एक अच्छे कविवृत्त-संग्रह भी हिंदी में निकले।

हिंदी भाषा के द्वारा ही सब प्रकार के वैज्ञानिक विषयों की शिक्षा की व्यवस्था का विचार भी लोगों के चित्त से अब उठ रहा था। पर बड़ी भारी कठिनता पारिभाषिक शब्दों के संबंध में थी। इससे अनेक विद्वानों के सहयोग और परामर्श से संवत् १९६३ में सभी ने "वैज्ञानिक कोश" प्रकाशित किया। भिन्न भिन्न विषयो पर पुस्तकें लिखाकर प्रकाशित करने का काम तो तब से अब तक बराबर चल ही रहा है। स्थापना के तीन वर्ष पीछे सभा ने अपनी पत्रिका (ना॰ प्र॰ पत्रिका) निकाली जिसमें साहित्यिक, वैज्ञानिक, ऐतिहासिक, दार्शनिक सब प्रकार के लेख आरंभ ही से निकलने लगे थे और जो आज भी साहित्य से संबंध रखनेवाले अनुसंधान और पर्यालोचन उद्देश्य रखकर चल रही है। 'छत्रप्रकाश', 'सुजानचरित्र', 'जंगनामा', 'पृथ्वीराज रासो',