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हिंदी-साहित्य का इतिहास

सही तो मुलाहजा अवश्य ही करें। ऐसा करने से आपको मालूम हो जाएगा कि जिसे आप मुर्दा समझ रहे हैं, वह अब तक इन जिलों में बोली जाती है। अगर आपको इस 'भाखा' नामक भाषा को मरे तीन सौ बर्ष हुए तो कृपा करके यह बताइए कि श्रीमान् के ही के सधर्मी काजिम अली आदि कवियों ने किस भाषा में कविता की है। १७०० ईसवी से लेकर ऐसे अनेक मुसलमान कवि हो चुके है, जिन्होंने भाषा में बड़े-बड़े ग्रंथ बनाए है। हिंदू-कवियों की ब्याप ख़बर न रखने तो कोई विशेष ख्याति की बात न थी।

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आनरेवल असगर अली खां की पांचवी उक्ति यह है, उर्दू या हिंदुस्तान ही यहां की सार्वदेशिक भाषा है। आपके इन कथन की सच्चाई की जांच समाज में ही हो सकती है। ऊपर हाला साहब के दीवान और दूसरे साहित्य-सम्मेलन में सभापति के भाषण से जो अवतरण दिए गए हैं उन्हें खाँ साहब बारी-बारी से एक बंगाली, एक मदरासी, एक गुजराती और एफ महाराष्ट्र को, जो इन प्रांत के निवासी न हों, दिखायें और उनसे यह कहे कि इनका मतलब हमें समझा दीजिए। बस तत्काल ही आपको मालूम हो जाएगा कि दो में से कौन भाषा अन्य प्रांतवाली अधिक समझते हैं।

श्रीयुत असगर अली खाँ के इस कथन से कि "Urdu or Hindustari is the lingua france of the country" एक भेद की बात खुल गई। वह यह कि आप लोगों की राय में यह हिंदुस्तानी और कुछ नहीं, उर्दू ही का एक नाम है। अतएव समझना चाहिए कि जब हिंदुस्तानी भाषा के प्रयोग पर जोर दिया जाता है तब "हिंदुस्तानी" नाम की आड़ में उर्दू ही का पक्ष लिया जाता है, और बेचारी हिंदी के बहिष्कार की चेष्टा की जाती है।

(२) जिस समाज के विद्यार्थी बच्चों तक को अपने दोषों पर धूल डालकर दूसरों को धमकाने और बिना पूछे ही उन्हे "नेक सलाह" देने का अधिकार है उसके बड़ों और विद्वानों के पराक्रम की सीमा कौन निर्दिष्ट कर सकेगा?

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हमारे पास इससे भी बढ़कर कुतूहलजनक पत्र आए हैं। बनावटी या सच्चा नाम देकर बी॰ सिंह नाम के एक महाशय ने आगरे से एक पोस्टकार्ड हमें उर्दू में भेजा है। उसमें अनेक दुर्वचनों और अभिशापों के अनंतर इस बात पर दुःख प्रकट किया गया है।