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गद्य-साहित्य का प्रसार


जीवन-वृत्त 'हिंदी-कोविंद रत्नमाला' के दो भागों में आपने संगृहीत किए हैं। शिक्षोपयोगी तीन पुस्तकें––भाषा-विज्ञान, हिंदी भाषा और साहित्य तथा साहित्यालोचन––भी आपने लिखी या संकलित की है।

हास्य-विनोद पूर्ण लेख लिखनेवालों में कलकत्ते के पं जगन्नाथप्रसाद चतुर्वेदी का नाम भी बराबर लिया जाता है। पर उनके अधिकांश लेख भाषण मात्र हैं, स्थायी विषयों पर लिखे हुए निबंध नहीं।


पं॰ चंद्रधर गुलेरी का जन्म जयपुर में एक विख्यात पंडित् घराने में २५ आषाढ़ संवत् १९४० में हुआ था। इनके पूर्वज काँगड़े के गुलेर नामक स्थान से जयपुर आए थे। पं॰ चंद्रधरजी संस्कृत के प्रकांड विद्वान् और अँगरेजी की उच्च शिक्षा से संपन्न व्यक्ति थे। जीवन के अंतिम वर्षों के पहले ये बराबर अजमेर के मेयो कालेज में अध्यापक रहे। पीछे काशी हिंदू-विश्वविद्यालय के ओरियंटल कालेज के प्रिंसिपल होकर आए। पर हिंदी के दुर्भाग्य से थोड़े ही दिनों में सं॰ १९७७ में इनका परलोकवास हो गया। ये जैसे धुरंधर पंडित थे वैसे ही सरल और विनोदशील प्रकृति के थे।

गुलेरीजी ने 'सरस्वती' के कुछ ही महीने पीछे अपनी थोड़ी अवस्था में ही जयपुर से 'समालोचक' नामक एक मासिक-पत्र अपने संपादकत्व में निकलवाया था। उक्त पत्र द्वारा गुलेरीजी एक बहुत ही अनूठी लेख-शैली लेकर साहित्यक्षेत्र में उतरे थे। ऐसी गंभीर और पांडित्यपूर्ण हास, जैसा इनके लेखों में रहता था, और कही देखने में न आया। अनेक गूढ़ शास्त्रीय विषयों तथा कथा-प्रसंगों की ओर विनोदपूर्ण संकेत करती हुई इनकी वाणी चलती थी। इसी प्रसंग-गर्भत्व (Allusiveness) के कारण इनकी चुटकियों का आनंद अनेक विषयों की जानकारी रखनेवाले पाठकों को ही विशेष मिलता था। इनके व्याकरण ऐसे रूखे विषय के लेख भी मजाक से खाली नहीं होते थे।

यह बेधड़क कहा जा सकता है कि शैली की जो विशिष्टता और अर्थगर्भित वक्रता गुलेरीजी में मिलती है, वह और किसी लेखक में नहीं। इनके स्मित हास की सामग्री ज्ञान के विविध क्षेत्रों से ली गई है। अतः इनके लेखों का पूरा आनंद उन्हीं को मिल सकता है जो बहुज्ञ या कम से कम बहुश्रुत हैं। इनके