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हिंदी-साहित्य का इतिहास

है नमस्कार!......हटना भा-आई।.......आदाब अर्ज़ दारोगा जी"।

(पुष्करिणों, में चोर, नाम की कहानी––भगवतीप्रसाद वाजपेयी)

हिंदी में जो कहानियाँ लिखी गई हैं, स्थूल दृष्टि से देखने पर, वे इन प्रणालियों पर चली दिखाई पड़ती हैं––

(१) सादे ढंग से केवल कुछ अत्यंत व्यंजक घटनाएँ और थोड़ी बातचीत सामने लाकर क्षिप्र गति से किसी एक गंभीर संवेदना या मनोभाव में पर्यवसित होनेवाली, जिसका बहुत ही अच्छा नमूना है स्वर्गीय गुलेरीजी की प्रसिद्ध कहानी 'उसने कहा था'। पं॰ भगवतीप्रसाद वाजपेयी की 'निंदिया' और 'पेंसिल स्केच' नाम की कहानियाँ भी इसी ढंग की हैं। ऐसी कहानियों में परिस्थिति की मार्मिकता अपने वर्णन या व्याख्या द्वारा हृदयंगम कराने का प्रयत्न लेखक नहीं करता, उसका अनुभव वह पाठक पर छोड़ देता है।

(२) परिस्थितियों के विशद और मार्मिक––कभी कभी रमणीय और अलंकृत––वर्णनों और व्याख्याओं के साथ मंद मधुर गति से चलकर किसी एक मार्मिक परिस्थिति में पर्यवसित होनेवाली। उदाहरण––स्व॰ चंडीप्रसाद हृदयेश की 'उन्मादिनी', 'शांतिनिकेतन'। ऐसी कहानियों में परिस्थिति के अंतर्गत प्रकृति का चित्रण भी प्रायः रहता है।

(३) उक्त दोनों के बीच की पद्धति ग्रहण करके चलनेवाली, जिसमें घटनाओं की व्यंजकता और पाठकों की अनुभूति पर पूरा भरोसा न करके लेखक भी कुछ मार्मिक व्याख्या करता चलता है; उ॰––प्रेमचंदजी की कहानियाँ। पं॰ विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक, पं॰ ज्वालादत्त शर्मा, श्री जैनेद्रकुमार, पं॰ विनोदशंकर व्यास, श्री सुदर्शन, पं॰ जनार्दनप्रसाद झा द्विज, इत्यादि अधिकांश, लेखकों की कहानियाँ अधिकतर इसी पद्धति पर चली हैं।

(४) घटना और संवाद दोनों में गूढ़ व्यंजना और रमणीय कल्पना के सुंदर समन्वय के साथ चलनेवाली। उ॰––प्रसादजी तथा राय कृष्णदासजी की कहानियाँ।

(५) किसी तथ्य का प्रतीक खड़ा करनेवाली लाक्षणिक कहानी, जैसे पांडेय बेचन शर्मा उग्र का 'भुनगा'।