पृष्ठ:हिंदी साहित्य का इतिहास-रामचंद्र शुक्ल.pdf/५७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
५४५
गद्य-साहित्य की वर्त्तमान गति

वस्तु समष्टि के स्वरूप की दृष्टि से भी बहुत से वर्ग किए जा सकते हैं, जिनमें से मुख्य ये हैं––

(१) सामान्यतः जीवन के किसी स्वरूप की मार्मिकता सामने लानेवाली। अधिकतर कहानियाँ इस वर्ग के अंतर्गत आएँगी।

(२) भिन्न भिन्न वर्गों के संस्कार का स्वरूप सामने रखनेवाली। उ॰––प्रेमचदजी की 'शतरंज के खिलाड़ी' और श्री ऋषभचरण जैन की 'दान' नाम की कहानी।

(३) किसी मधुर या मार्मिक प्रसंग-कल्पना के सहारे किसी ऐतिहासिक काल का खंड-चित्र दिखानेवाली। उ॰––राय कृष्णदासजी की 'गहूला' और जयशंकर प्रसादजी की 'आकाशदीप'।

(४) देश की सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था से पीड़ित जनसमुदाय की दुर्दशा सामने लानेवाली, जैसे श्री भगवतीप्रसाद वाजपेयी की 'निंदिया लागी', 'हृद्गति' तथा श्री जैनैद्रकुमार की 'अपना अपना भाग्य' नाम की कहानी।

(५) राजनीतिक आंदोलन में संमिलित नव-युवकों के स्वदेश-प्रेम, त्याग, साहस और जीवनोत्सर्ग का चित्र खड़ा करनेवाली, जैसे पांडेय बेचन शर्मा उग्र की 'उसकी माँ' नाम की कहानी।

(६) समाज के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के बीच धर्म, समाज-सुधार, व्यापार व्यवसाय, सरकारी काम, नई सभ्यता आदि की ओट में होनेवाले पाखंडपूर्ण पापाचार के चटकीले चित्र सामने लानेवाली कहानियाँ जैसी 'उग्र' जी की है। 'उग्र' की भाषा बड़ी अनूठी चपलता और आकर्षक वैचित्र्य के साथ चलती है। इस ढंग की भाषा उन्हीं के उपन्यासों और 'चाँदनी' ऐसी कहानियों में ही मिल सकती है।

(७) सभ्यता और संस्कृति की किसी व्यवस्था के विकास का आदिम रूप झलकानेवाली, जैसे, राय कृष्णदासजी की 'अंतःपुर का आरंभ', श्रीमत की 'चँवेली की कली', श्री जैनेद्रकुमार की 'बाहुबली'।

(८) अतीत के किसी पौराणिक या ऐतिहासिक काल-खंड के बीच अत्यंत मार्मिक और रमणीय प्रसंग का अवस्थान करनेवाली, जैसे, श्री बिंदु ब्रह्मचारी और श्रीमंत समंत (पं॰ बालकराम विनायक) की कहानियाँ।

३५