पृष्ठ:हिंदी साहित्य का इतिहास-रामचंद्र शुक्ल.pdf/५७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
५५३
गद्य-साहित्य की वर्त्तमान

'प्रसाद' और 'प्रेमी' के नाटक यद्यपि ऐतिहासिक हैं, पर उनमे आधुनिक आदर्शों और भावनाओं का आभास इधर-उधर बिखरा मिलता है। 'स्कंदगुप्त' और 'चंद्रगुप्त' दोनो में स्वदेश-प्रेम, विश्वप्रेम और आध्यात्मिकता का आधुनिक रूप-रंग बराबर झलकता है। आजकल के मजहबी दंगों का स्वरूप भी इस 'स्कंदगुप्त' में देख सकते है। 'प्रेमी' के 'शिवासाधना' नाटक के शिवाजी भी कहते हैं––"मेरे शेष जीवन की एकमात्र साधना होगी भारतवर्ष को स्वतंत्र करना, दरिद्रता की जड़ खोदना, ऊँच-नीच की भावना और धार्मिक तथा सामाजिक असहिष्णुता का अंत करना, राजनीतिक और सामाजिक दोनों प्रकार की क्रांति करना।" हम समझते हैं कि ऐतिहासिक नाटक में किसी पात्र से आधुनिक भावनाओं की व्यंजना जिस काल का वह नाटक हो उस काल की भाषा-पद्धति और विचार-पद्धति के अनुसार करानी चाहिए; 'क्रांति' ऐसे शब्दों द्वारा नहीं। 'प्रेमी' जी के 'रक्षा-बंधन' में मेवाड़ की महारानी कर्मवती का हुमायूँ को भाई कहकर राखी भेजना और हुमायूँ का गुजरात के मुसलमान बादशाह बहादुरशाह के विरुद्ध एक हिंदू राज्य की रक्षा के लिये पहुँचना, यह कथा-वस्तु ही हिंदू-मुसलिम भेद-भाव की शांति सूचित करती है। उसके ऊपर कट्टर सरदारों और मुल्लों की बात का विरोध करता हुआ हुमायूँ जिस उदार भाव की सुंदर व्यंजना करता है वह वर्तमान हिंदू-मुसलिम दुर्भाव की शांति का मार्ग दिखाता जान पड़ता है। इसी प्रकार 'प्रसाद' जी के 'ध्रुव-स्वामिनी' नामक बहुत छोटे से नाटक में एक संभ्रात, राजकुल की स्त्री का विवाह-संबंध-मोक्ष सामने लाया गया है, जो वर्त्तमान सामाजिक आंदोलन का एक अंग है।

वर्त्तमान राजनीति के अभिनयों का पूर्ण परिचय प्राप्त कर सेठ गोविंददास जी ने इधर साहित्य के अभिनय-क्षेत्र में भी प्रवेश किया है। उन्होंने तीन अच्छे नाटक लिखे हैं। "कर्त्तव्य" में राम और कृष्ण दोनों के चरित्र नाटक के पूर्वार्ध और उत्तरार्ध दो खंड करके रखे गए हैं जिनका उद्देश्य है कर्त्तव्य के विकास की दो भूमियाँ दिखाना। नाटककार के विवेचनानुसार मर्यादा-पालन प्रथम भूमि है जो पूर्वार्ध में राम द्वारा पूर्णता को पहुँचती है। लोकहित की व्यापक दृष्टि से आवश्यकतानुसार नियम और मर्यादा का उल्लंघन उसके आगे की भूमि है, जो नाटक के उत्तरार्ध में श्रीकृष्ण ने अपने चरित्र द्वारा––जैसे,