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हिंदी-साहित्य का इतिहास


संग्रह "आधुनिक एकांकी नाटक" के नाम से प्रकाशित हुआ है। इसमें श्रीसुदर्शन, रामकुमार वर्मा, भुवनेश्वर, उपेंद्रनाथ अश्क, भगवतीचरण वर्मा, धर्मप्रकाश आनंद, उदयशंकर भट्ट के क्रमशः 'राजपूत की हार', 'दस मिनट', 'स्ट्राइक', 'लक्ष्मी का स्वागत', 'सबसे बड़ा आदमी', 'दीन' तथा 'दस हजार' नाम के नाटक संगृहीत हैं।

हिंदी के कुछ प्रसिद्ध कवियों और उपन्यासकारों ने भी––जैसे, बा॰ मैथिलशरण गुप्त, श्री वियोगी हरि, माखनलाल चतुर्वेदी, प्रेमचंद, विश्वंभरनाथ शर्मा कौशिक, सुदर्शन––नाटक की ओर हाथ बढ़ाया, पर उनका मुख्य स्थान कवियों और उपन्यासकारों के बीच ही रहा।

मौलिक नाटकों के अतिरिक्त संस्कृत के पुराने नाटकों में से भास के 'स्वप्नवासवदत्ता' (अनुवादक––सत्यजीवन वर्मा), 'पंचरात्र', 'मध्यम व्यायोग', 'प्रतिज्ञायौगधरायण’ (अनु॰––ब्रजजीवनदास) ; 'प्रतिमा' (अनु॰––बलदेव शास्त्री) तथा दिङ्नाग के 'कुंदमाला' नाटक (अनु॰––वागीश्वर विद्यालकार) के अनुवाद भी हिंदी में हुए।

जर्मन कवि गेटे के प्रसिद्ध नाटक 'फाउस्ट' का अच्छा अनुवाद श्री भोलानाथ शर्मा एम॰ ए॰ ने किया है।



निबंध

विश्वविद्यालयों के उच्च शिक्षा-क्रम के भीतर हिंदी-साहित्य का समावेश हो जाने के कारण उत्कृष्ट कोटि के निबंध की––ऐसे निबंधों की जिनकी असाधारण शैली या गहन विचारधारा पाठकों को मानसिक श्रमसाध्य नूतन उपलब्धि के रूप में जान पड़े––जितनी ही आवश्यकता है उतने ही कम वे हमारे सामने आ रहे हैं। निबंध की जो स्थिति हमें द्वितीय उत्थान में दिखाई पड़ी प्रायः वही स्थिति इस वर्त्तमान काल में भी बनी हुई है। अर्थ वैचित्र्य और भाषा शैली का नूतन विकास जैसा कहानियों के भीतर प्रकट हुआ है, वैसा निबंध के क्षेत्र में नहीं देखने में आ रहा है, जो उसका उपयुक्त स्थान है।