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नई धारा

(गोल्डस्मिथ के Traveller का अनुवाद) निकली। इनके अतिरिक्त खड़ी बोली में फुटकल कविताएँ भी पाठकजी ने बहुत सी लिखी। मन की मौज के अनुसार कभी कभी ये एकही विषय के वर्णन में दोनों बोलियों के पद्य रख देते थे। खड़ी बोली और ब्रजभाषा दोनों में ये बराबर कविता करते रहे। 'ऊजड़ ग्राम' (Deserted village) इन्होंने ब्रजभाषा में ही लिखा। अँगेरेजी और संस्कृत दोनों के काव्य-साहित्य का अच्छा परिचय रखने के कारण हिंदी कवियों में पाठकजी की रुचि बहुत ही परिरुकृत थी। शब्दशोधन में तो पाठकजी अद्वितीय थे। जैसी चलती और रसीली इनकी ब्रजभाषा होती थी, वैसा ही कोमल और मधुर संस्कृत पद-विन्यास भी। ये वास्तव में एक बड़े प्रतिभाशाली,भावुक और सुरुचिसंपन्न कवि थे। भद्दापन इनमें न था––न रूप रंग में, न भाषा में, न भाव में, न चाल में न भाषण में।

इनकी प्रतिभा बराबर रचना के नए नए मार्ग भी निकाला करती थी। छंद, पदविन्यास, वाक्यविन्यास आदि के संबंध में नई नई बंदिशे इन्हें खूब सूझा करती थीं। अपनी रुचि के अनुसार कई नए ढाँचे के छंद इन्होंने निकाले जो पढ़ने में बहुत ही मधुर लय पर चलते थे। यह छंद देखिए––

नाना कृपान निज पानि लिए, वपु नील वसन परिधान किए,
गंभीर घोर अभिमान हिर, छकि पारिजात-मधुपान किए,
छिन छिन पर जोर मरोर दिखावत, पलपल पर आकृति-कोर झुकावत।
यह मोर नचावत, सोर मचावत, स्वेत स्वेत बगपाँति उड़ावत॥
नंदन प्रसून-मकरंद-बिंदु-मिश्रित समीर बिनु धीर चलावत।

अंत्यानुप्रास-रहित बेठिकाने समाप्त होनेवाले गद्य के-से लंबे वाक्यों के छंद भी (जैसे अँगरेजी में होते है) इन्होंने लिखे हैं। 'सांध्य-अटन' का यह छंद देखिए––

बिजन बन-प्रांत था; प्रकृतिमुख शात था,
अटन का समय या, रजनि का उदय था।
प्रसव के काल की लालिमा में लसा,
बाल-शशि व्योम की ओर था आ रहा॥