अनुसार रासो में दिए हुए संवत् ठीक नहीं है। अब तक ऐसे दानपत्र या शिलालेख जिनमें पृथ्वीराज, जयचंद और परमर्दिदेव (महोबे के राजा परमाल) के नाम आए है, इस प्रकार मिले हैं——
पृथ्वीराज के ४, जिनके संवत् १२२४ ओर १२४४ के बीच में है। जयचंद के १२, जिनके संवत् १२२४ और १२४३ के बीच में हैं। परमर्दिदेव के ६, जिनके संवत् १२२३ और १२५८ के बीच में हैं। इनमें से एक संवत् १२३९ का है जिसमें पृथ्वीराज और परमर्दिदेव (राजा परमाल) के युद्ध का वर्णन है।
इन संवतों से पृथ्वीराज का जो समय निश्चत होता है उसकी सम्यक् पुष्टि फारसी तवारीखो से भी हो जाती है। फारसी इतिहासों के अनुसार शहाबुद्दीन के साथ पृथ्वीराज का प्रथम युद्ध ५८७ हिजरी (वि० सं० १२४७——ई० सन् ११९१) में हुआ। अतः इन संवतों के ठीक होने में किसी प्रकार का संदेह नही।
पंडित मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या ने रासो के पक्षसमर्थन में इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि रासो के सब संवतों में, यथार्थ संवतों से ९०-९१ वर्ष का अंतर एक नियम से पड़ता है। उन्होंने यह विचार उपस्थित किया कि यह अंतर भूल नहीं है, बल्कि किसी कारण से रखा गया है। इसी धारणा को लिए हुए उन्होंने रासो के इस दोहे को पकड़ा——
एकादस सै पंचदह विक्रम साक अनंद।
तिहि रिपुजय पुरहरन के भए पृथिराज नरिंद॥
और “विक्रम साक अनंद" का अर्थ किया——अ=शून्य और नंद=९ अर्थात् ९० रहित विक़म संवत्। अब क्यों ये ९० वर्ष घटाए गए, इसका वे कोई उपयुक्त कारण नहीं बता सके। नंदवंशी शूद्र थे, इसलिये उनका राजत्वकाल राजपूत्र भाटो ने निकाल दिया, इस प्रकार की विलक्षण कल्पना करके वे रह गए। पर इन कल्पनाओं से किसी प्रकार समाधान नहीं होता। आज तक और कहीं प्रचलित संवत् में से कुछ काल निकालकर संवत् लिखने की प्रथा नहीं पाई गई। फिर यह भी विचारणीय है कि जिस किसी ने प्रचलित विक्रम संवत् में से ९०-९१ वर्ष निकालकर पृथ्वीराजरासो में संवत् दिए हैं, उसने