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नई धारा

झारैंगे अँगारे ये तरनि तारे तारापति
जारैंगे खमंडल में आग मढ़ जाएगी।
काहू विधि विधि की बनावट बचैगी नाहिं
जो पै वा वियोगिनी की आह कढ़ जाएगी॥

पीछे खड़ी बोली का प्रचार होने पर वे उसमें भी बहुत अच्छी रचना करने लगे। उनकी पदावली कुछ उद्दंडता लिए होती थी। इसका कारण यह है कि उनका संबंध आर्य-समाज से रहा जिसमें अंधविश्वास और सामाजिक कुरीतियों के उग्र विरोध की प्रवृत्ति बहुत दिनों तक जाग्रत रही। उसी अंतर्वृत्ति का आभास उनकी रचनाओं में दिखाई पड़ता है। "गर्भरंडा-रहस्य" नामक एक बड़ा प्रबंध-काव्य उन्होंने विधवाओं की बुरी परिस्थिति और देवमंदिरों के अनाचार आदि दिखाने के उद्देश्य से लिखा था। उसका एक पद्य देखिए––

फैल गया हुरदंग होलिका की हलचल में।
फूल फूलकर फाग फला महिला-महल में॥
जननी भी तज लाज बनी ब्रजमक्खी सबकी।
पर मैं पिंड छुडाय जवनिका में जा दबकी॥

फबतियाँ और फटकार इनकी कविताओं की एक विशेषता है। फैशनवालों पर कही हुई "ईश गिरिजा को छोड़ि ईशु गिरिजा मे जाय" वाली प्रसिद्ध फबती इन्हीं की है। पर जहाँ इनकी चित्तवृत्ति दूसरे प्रकार की रही है, वहाँ की उक्तियाँ बड़ी मनोहर भाषा में हैं। यह कवित्त ही लीजिए––

तेज न रहेगा तेजधारियों का नाम को भी,
मंगल मयंक मंद मंद पड़ जायँगे।
मीन बिन मारे मर जायँगे सरोवर में,
डूब डूब 'शंकर' सरोज सड़ जायँगे॥
चौक चौंक चारों ओर चौकड़ी भरेंगे मृग,
खंजन खिलाड़ियों के पंख झड़ जायँगे।
बालों इन अँखियों की होड़ करने को अब,
कौन से अड़ीले उपमान अड़ जायँगे?