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नई धारा

स्वदेशभक्ति की जो भावना भारतेंदु के समय से चली आती थी उसे सुंदर कल्पना द्वारा रमणीय और आकर्षक रूप त्रिपाठीजी ने ही प्रदान किया। त्रिपाठीजी के उपर्युक्त तीनों काव्य देशभक्ति के भाव से प्रेरित है। देशभक्ति का यह भाव उनके मुख्य पात्रों को जीवन के कई क्षेत्रों में सौंदर्य प्रदान करता दिखाई पड़ता है––कर्म के क्षेत्र में भी, प्रेम के क्षेत्र में भी। वे पात्र कई तरफ से देखने में सुंदर लगते हैं। देशभक्ति को रसात्मक रूप त्रिपाठीजी द्वारा प्राप्त हुआ, इसमें संदेह नहीं है।

त्रिपाठी जी ने भारत के प्रायः सब भागों में भ्रमण किया है, इससे इनके प्रकृति-वर्णन में स्थानगत विशेषताएँ अच्छी तरह आ सकी है। इनके 'पथिक' में दक्षिण भारत के रम्य दृश्यों का बहुत विस्तृत समावेश है। इसी प्रकार इनके 'स्वप्न' में उत्तराखंड और कश्मीर की सुषमा सामने आती है। प्रकृति के किसी खंड के सश्तिष्ट चित्रण की प्रतिभा इनमे अच्छी है। सुंदर अलंकारिक साम्य खड़ा करने में भी इनकी कल्पना प्रवृत्त होती है। पर झूठे आरोपों द्वारा अपनी उड़ान दिखाने या वैचित्र्य खड़ा करने के लिये नहीं।

'स्वप्न' नामक खंड-काव्य तृतीय उत्थान-काल के भीतर लिखा गया है। जब कि 'छायावाद' नाम की शाखा चल चुकी थी, इससे उस शाखा को भी कुछ रंग कहीं कहीं उसके भीतर झलक मारता है, जैसे––

प्रिय की सुध सी ये सरिताएँ ये कानन कातार सुसज्जित।
मैं तो नहीं, किंतु है मेरा हृदय किसी प्रियतम से परिचित।
जिसके प्रेम पत्र आते हैं प्रायः सुख-संवाद-सन्निहित॥

अतः उस काव्य को लेकर देखने से थोड़ी थोड़ी इनकी सब प्रवृत्तियाँ झलक जाती हैं। उसके आरंभ में हम अपनी प्रिया में अनुरक्त बसंत नामक एक सुंदर और विचारशील युवक को जीवन की गंभीर वितर्क-दशा में पाते हैं। एक ओर उसे प्रकृति की प्रमोदमयी सुषमाओं के बीच प्रियतमा के साहचर्य का प्रेम-सुख लीन रखना चाहता है, दूसरी ओर समाज के असख्य प्राणियों का कृष्ट-क्रंदन उसे उद्धार के लिये बुलाता जान पड़ता हैं। दोनों पक्षों के बहुत से सजीव चित्र बारी बारी से बड़ी दूर तक चलते हैं। फिर उस युवक