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नई धारा

नए-नए छंदों की योजना के संबंध में हमें कुछ नहीं कहना है। यह बहुत अच्छी बात है। 'तुक' भी कोई ऐसी अनिवार्य वस्तु नहीं। चरणों के भिन्न प्रकार के मेल चाहे जितने किए जायँ, ठीक हैं। पर इधर कुछ दिनों से बिना छंद (metre) के पद्य भी–– बिना तुकांत के होना तो बहुत ध्यान देने की बात नहीं––निरालाजी ऐसे नई रंगत के कवियों में देखने में आते है। यह अमेरिका के एक कवि वाल्ट हिटमैन (Walt Whitman) की नकल है जो पहले बंगला में थोड़ी बहुत हुई। बिना किसी प्रकार की छंदोव्यवस्था की अपनी पहली रचना Leaves of Grass उसने सन् १८५५ ई॰ में प्रकाशित की। उसके उपरांत और भी बहुत सी रचनाएँ इस प्रकार की मुक्त या स्वछंद पक्तियों में निकलीं, जिनके संबंध में एक समालोचक ने लिखा है––

"A chaos of impressions, thought of feelings thrown together without rhyme, which matters little, without metre, which matters more, and often without reason, which matters much"[१]

सारांश यह कि उसकी ऐसी रचनात्रों में छंदोव्यवस्था का ही नहीं, बुद्धितत्व का भी प्रायः अभाव है। उसकी वे ही कविताएँ अच्छी मानी और पढ़ी गई जिनमे छंद और तुकांत की व्यवस्था थी।

पद्य व्यवस्था से मुक्त काव्य-रचना वास्तव में पाश्चात्य ढंग के गीत-काव्यों के अनुकरण का परिणाम है। हमारे यहाँ के संगीत में बँधी हुई रागरागिनियाँ हैं। पर योरप में संगीत के बड़े-बड़े उस्ताद (Composers) अपनी अलग अलग नाद-योजना या स्वर-मैत्री चलाया करते है। उस ढंग का अनुकरण पहले बंगाल में हुआ। वहाँ की देखा-देखी हिंदी में भी चलाया गया। 'निराला' जी का तो इसकी ओर प्रधान लक्ष्य रहा। हमारा इस संबंध में यही कहना है कि काव्य का प्रभाव केवल नाद पर अवलंबित नहीं।

छंदों के अतिरिक्त वस्तु-विधान और अभिव्यंजन-शैली में भी कई प्रकार की प्रवृत्तियाँ इस तृतीय उत्थान में प्रकट हुई जिससे अनेकरूपता की ओर


  1. Literature in the Century Nineteenth Century Series by A. B. De Mille.

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