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नई धारा

सज-धजकर मृदु व्यथा-सुंदरी तजकर सब घर बार।
दुःख-यामिनी में जीवन की करती है अभिसार॥

उस अनंत के साथ अपना 'अटल संबंध' कवि बड़ी सफाई से इतने ही में व्यक्त कर देता है––

तू अनंत धुतिमय प्रकाश है, मैं हूँ मलिने अँधेरा,
पर सदैव संबंध अटल है, जग में मेरा तेरा।
उदय-अस्त तक तेरा साथी मैं ही हूँ इस जग में,
मैं तुझमें ही मिल जाता हूँ होता जहाँ सबेरा॥

'मानवी' में अभागिनी को संबोधन करके कवि कहता है––

चुकती है नहीं निशा तेरी; हे कभी प्रभात नहीं होता।
तेरे सुहाग का सुख बाले! आजीवन रहता है सोता॥
हैं फूल फूल जाते मधु में; सुरमित मलयानिल बहती हे।
सब लता-बल्लियाँ खिलती हैं, बस तू मुरझाई रहती है॥
सब आशाएँ-अभिलाषाएँ, उर-कारागृह में बंद हुई।
तेरे मन की दुख-ज्वालाएँ; मेरे मन में छंद हुई॥

अनूप शर्मा––बहुत दिनों तक ये ब्रजभाषा में ही अपनी ओजस्विनी बाग्धारा बहाते रहे। खड़ी बोली का जमाना देखकर ये उसकी ओर मुड़े। कुणाल का चरित्र इन्होंने 'सुनाल' नामक खंडकाव्य में लिखा। फिर बुद्ध भगवान् का चरित्र लेकर 'सिद्धार्थ' नामक अठारह सर्गों का एक महाकाव्य संस्कृत के अनेक वर्ण-वृत्तों में इन्होंने लिखा। इनकी फुटकल कविताओं का संग्रह 'सुमनांजलि' में है। इन्होंने फुटकल प्रसगों के लिये कवित्त ही चुना है। भाषा के सरल प्रवाह के अतिरिक्त इनकी सबसे बड़ी विशेषता है व्यापक दृष्टि जिससे ये इमारे ज्ञान-पथ में आनेवाले अनेक विषयों को अपनी कल्पना द्वारा आकर्षण और मार्मिक रूप में रखकर काव्यभूमि के भीतर ले आए है। जगत् के इतिहास, विज्ञान आदि द्वारा हमारा ज्ञान जहाँ तक पहुँचा है वहाँ तक हृदय को भी ले जाना आधुनिक कवियों का काम होना चाहिए। अनूप जी इसकी ओर बढ़े हैं। 'जीवन-मरण' में कवि की कल्पना जगत के इतिहास की विविध