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वीरगाथा

नानूराम का कहना है कि चंद के चार लड़के थे जिनमें से एक मुसलमान हो गया। दूसरे का कुछ पता नहीं, तीसरे के वंशज अभोर में जा बसे और चौथै जल्ल का वंश नागौर में चला। पृथ्वीराजरासो में चंद के लड़कों का उल्लेख इस प्रकार है——

दहति पुत्र कविचंद के सुंदर रूप सुजान।
इक जल्ह गुन बावरों गुन-समुंद ससभान॥

पृथ्वीराजरासो में कवि चंद के दसों पुत्रों के नाम दिए हैं। 'सूरदास' की साहित्यलहरी की टीका में एक पद ऐसा आया हैं जिसमें सूर की वंशावली दी है। वह पद यह है——

प्रथम ही प्रथु यज्ञ तें भे प्रगट अद्भुत रूप। ब्रह्मराव विचार ब्रह्मा राखु नाम अनूप॥
पान पय देवी दियो शिव आदि सुर सुख पाय। कह्यो दुर्गा पुत्र तेरो भयो अति अधिकाय॥
पारि पायँन सुरन के सुर सहित अस्तुति कीन्। तासु वंस प्रसंस में भौ चंद चारु नवीन॥
भूप पृथ्वीराज दीन्हों तिन्हें ज्वाला देस। तनय ताके चार कीनो प्रथम आप नरेस॥
दूसरे गुनचंद ता सुत सीलचंद सरूप। वीरचंद प्रताप पूरन भयो अद्भुत रूप॥
रणथंभौर हमीर भूपति सँगत खेलते जाय। तासु बंस अनूप भी हरिचंद अति विख्याय॥
आगरे रहि गोपचल में रह्यो ता सुत वीर। पुत्र जनमे सात ताके महा भट गंभीर॥
कृष्णचंद उदारचंद जु रूपचंद सुभाइ। बुद्धिचंद प्रकाश चौथे चंद भे सुखदाइ॥
देवचंद प्रबोध ससृतचंद ताको नाम। भयो सप्तो दाम सूरजचंद मंद निकाम॥

इन दोनों वंशावलियों के मिलाने पर मुख्य भेद यह प्रकट होता है कि नानूराम ने जिनको जल्लचंद की वंश-परंपरा में बताया है, उक्त पद में उन्हें गुणचंद की परंपरा में कहा है। बाकी नाम प्रायः मिलते हैं।

नानूराम का कहना है कि चंद ने तीन या चार हजार श्लोक-संख्या में अपना काव्य लिखा था। उसके पीछे उनके लड़के ने अंतिम दस समयों को लिखकर उस ग्रंथ को पूरा किया। पीछे से और लोग उसमें अपनी रुचि अथवा आवश्यकता के अनुसार जोड़ तोड़ करते रहे। अंत में अकबर के समय में इसने एक प्रकार से परिवर्तित रूप धारण किया। अकबर ने इस प्रसिद्ध ग्रंथ को सुना था। उसके इस प्रकार उत्साह-प्रदर्शन पर कहते हैं कि उस समय रास नामक अनेक ग्रंथों की रचना की गई। नानूराम का कहना है कि असली पृथ्वीराजरासो