पृष्ठ:हिंदी साहित्य का इतिहास-रामचंद्र शुक्ल.pdf/७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
४८
हिंदी-साहित्य का इतिहास

की प्रति मेरे पास है। पर उन्होंने महोबा समय की जो नकल महामहोपाध्याय पंडित हरप्रसाद शास्त्री को दी थी वह और भी ऊटपटांग और रद्दी है।

पृथ्वीराजरासो के ‘पद्मावती समय' के कुछ पद्य नमूने के लिये दिए जाते हैं——

हिंदुवान-थान उत्तम सुदेस। तहँ उदित द्रुग्ग दिल्ली सुदेस।
संभरि-नरेस चहुआन थान। प्रथिराज तहाँ राजंत भान।
संभरि नरेस सोमेस पूत। देवत्त रूप अवतार धृत[१]
जिहि पकरि साह साहब लीन। तिहुँ बेर करिय पानीप-हीन॥
सिंगिनि-सुसद्द गुनि चढि जँजीर। चुक्कइ न सबद बेधत तीर[२]


मनहु कला ससभान[३] कला सोलह सो बन्निय।
बाल बैस, ससि ता समीम अम्रित रस पिन्निय[४]
बिगसि कमल स्रिग, भमर, बेनु, खंजन मृग लुट्टिय।
हीर, कीर, अरु बिंब मोति नखसिख अहिघुट्टिय[५]

***
कुट्टिल केस सुदेस पोह परिचियत पिक्क सद[६]
कमल-गंध बयसंध, हंसगति चलत मंद मंद॥
सेत वस्त्र सोहै सरीर नष स्वाति-बूँद जस।
भमर भवहिं भुल्लह सुभाव मकरंद बास रस॥


प्रिय प्रिथिराज नरेस जोग लिषि कग्गर[७] दिन्नौ।
लगन बरग रचि सरब दिन्न द्वादस ससि लिन्नौ॥
सै ग्यारह अरु तीस साष संवत् परमानह।
जो पित्री-कुल सुद्ध बरन, बरि रक्खहु प्रानह॥


  1. धृत, धारण किया।
  2. (शब्दबेधी बाण चलाने का उल्लेख) सिंगी बाजे का शब्द गुनकर या अंदाज कर डोरी पर चढ़ उसका तीर उस शब्द को बेधते हुए (बेधने में) नहीं चूकता था।
  3. चंद्रमा।
  4. उसी के पास से मानो अमृतरस पिया।
  5. अभिघटित किया। मनाया।
  6. पोहे हुए अच्छे मोती दिखाई पड़ते हैं।
  7. कागज।