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हिंदी-साहित्य का इतिहास
की प्रति मेरे पास है। पर उन्होंने महोबा समय की जो नकल महामहोपाध्याय पंडित हरप्रसाद शास्त्री को दी थी वह और भी ऊटपटांग और रद्दी है।
पृथ्वीराजरासो के ‘पद्मावती समय' के कुछ पद्य नमूने के लिये दिए जाते हैं——
मनहु कला ससभान[३] कला सोलह सो बन्निय।
बाल बैस, ससि ता समीम अम्रित रस पिन्निय[४]॥
बिगसि कमल स्रिग, भमर, बेनु, खंजन मृग लुट्टिय।
हीर, कीर, अरु बिंब मोति नखसिख अहिघुट्टिय[५]॥
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कुट्टिल केस सुदेस पोह परिचियत पिक्क सद[६]।
कमल-गंध बयसंध, हंसगति चलत मंद मंद॥
सेत वस्त्र सोहै सरीर नष स्वाति-बूँद जस।
भमर भवहिं भुल्लह सुभाव मकरंद बास रस॥
प्रिय प्रिथिराज नरेस जोग लिषि कग्गर[७] दिन्नौ।
लगन बरग रचि सरब दिन्न द्वादस ससि लिन्नौ॥
सै ग्यारह अरु तीस साष संवत् परमानह।
जो पित्री-कुल सुद्ध बरन, बरि रक्खहु प्रानह॥