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हिंदी-साहित्य का इतिहास

जिस प्रकार निरालाजी को छंद के बंधन अरुचिकर हैं उसी प्रकार समाजिक बंधन भी। इसीसे सम्राट् एडवर्ड की एक प्रशस्ति लिखकर उन्होंने उन्हें एक वीर के रूप में सामने रखा है जिसने प्रेम के निमित्त साहसपूर्वक पद-मर्यादा के समाजिक बंधन को दूर फेंका है।

रहस्यवाद से संबंध रखने वाली निरालाजी की रचनाएँ आध्यात्मिकता का वह रूप-रंग लेकर चली हैं जिसका विकास बंगाल में हुआ। रचना के प्रारंभिक काल में इन्होंने स्वामी विवेकानंद और श्रीरवींद्रनाथ ठाकुर की कुछ कविताओं के अनुवाद भी किए हैं। अदैतवाद के वेदांती स्वरूप को ग्रहण करने के कारण इन रहस्यात्मक रचनाओं में भारतीय दार्शनिक निरूपण की झलक जगह जगह मिलती है। इस विशेषता को छोड़ दें तो इनकी रहस्यात्मक कविताएँ भी उसी प्रकार माधुर्य-भावना को लेकर चली हैं जिस प्रकार और छायावादी कवियों की। 'रेखा' नाम की कविता में कवि ने प्रथम प्रेम के उदय का जो वर्णन किया हैं वह सर्वत्र एक ही चेतन सत्ता की अनुभूति के रूप में सामने आता है––

यौवन के तीर पर प्रथम था आया जब
स्रोत सौंदर्य का,
बीचियों में कलरव सुख-चुंबित प्रणय का
या मधुर आकर्षणमय
मज्जनावेदन मृदु फूटता सागर में
xxx
सब कुछ तो था असार
अस्तु, वह प्यार है?
सब चेतन को देखता
स्पर्श में अनुभव––रोमांच,
हर्ष रूप में––परिचय।
xxx
खींचा उसी ने था हृदय यह
जड़ों में चेतन मति कर्षण मिलता कहाँ