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नई धारा

प्रकार की कविताएँ 'अंजलि', 'रूपराशि', 'चित्ररेखा' 'चन्द्रकिरण' नाम के संग्रहों के रूप में प्रकाशित हुई हैं। श्री आरसीप्रसाद की रचनाओं का संग्रह 'कलापी' में हुआ है। श्री नरेंद्र के गीत उनके 'कर्ण फूल', 'शूल फूल', 'प्रभातफेरी' और 'प्रवासी के गीत' नामक संग्रहों में संकलित हुए हैं और श्री अंचल की कविताएँ 'मधूलिका' और 'अपराजिता' में संग्रह की गई हैं।


४––स्वच्छंद-धारा

छायावादी कवियों के अतिरिक्त वर्तमान काल में और भी कवि है जिनमें से कुछ ने यत्र-तत्र ही रहस्यात्मक भाव व्यक्त किए हैं। उनकी अधिक रचनाएँ छायावाद के अंतर्गत नहीं आतीं। उन सबकी अपनी अलग अलग विशेषता है। इस कारण उनको एक ही वर्ग में नहीं रखा जा सकता। सुभीते के लिये ऐसे कवियों की, समष्टि रूप से, 'स्वछंद धारा' प्रवाहित होती है। इन कवियों में पं॰ माखनलाल चतुर्वेदी ('एक भारतीय आत्मा'), श्री सियारामशरण गुप्त, पं॰ बालकृष्ण शर्मा 'नवीन', श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान, श्री हरिवंश राय 'बच्चन', श्री रामधारी सिंह 'दिनकर', ठाकुर गुरुभक्त सिंह और पं॰ उदयशंकर भट्ट मुख्य हैं। चतुर्वेदीजी की कविताएँ अभी तक अलग पुस्तक के रूप में प्रकाशित नहीं हुई। 'त्रिधारा' नाम के संग्रह में श्री केशवप्रसाद पाठक और श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान की चुनी हुई कविताओं के साथ उनकी भी कुछ प्रसिद्ध कविताएँ उद्धृत की गई हैं। श्री सियारामशरण गुप्त ने आरंभ में 'मौर्य-विजय' खंडकाव्य लिखा था। उनकी कविताओं के ये संग्रह प्रसिद्ध हैं––दूर्वादल, विषाद, आर्द्रा, पाथेय और मृण्मयी। 'आत्मोत्सर्ग', 'अनाथ' और 'बापू' उनके अन्य काव्य है। श्री नवीन ने 'उर्मिला' के संबंध में एक काव्य लिखा है जिसका कुछ अंश अस्तंगत 'प्रभा' पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। उनकी फुटकल कविताओं का संग्रह 'कुंकुम' नाम से छपा है। श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान की कुछ कविताएँ, जैसा कहा जा चुका है,

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