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हिंदी-साहित्य का इतिहास

'त्रिधारा' में संकलित है। 'मुकुल' उनकी शेष कविताओं का संग्रह है। श्री बच्चन ने 'खैयाम की मधुशाला' के उमर खैयाम की कविताओं का अँगरेजी के प्रसिद्ध कवि फिट्जेराल्ड कृत अँगरेजी अनुवाद के आधार पर, अनुवाद किया है। उनकी स्वतंत्र रचनाओं के कई संग्रह निकल चुके हैं। जैसे, 'तेरा हार', 'एकांत संगीत', 'मधुशाला', 'मधुबाला' और 'निशानियंत्रण' आदि। श्री दिनकर की पहली रचना है 'प्रणभंग'। यह प्रबंधकाव्य है। अभी उनके गीतों और कविताओं के दो संग्रह प्रकाशित हुए हैं––'रेणुका' और 'हुंकार'। ठाकुर गुरुभक्त-सिंह की लय से प्रसिद्ध और श्रेष्ठ कृति 'नूरजहाँ' प्रबंध-काव्य है। उनकी कविताओं के कई संग्रह भी निकल चुके हैं। उनमें 'सरस सुमन', 'कुसुमु-कुंज', वंशीध्वनि' और 'वन-श्री' प्रसिद्ध है। पंडित उदयशंकर भट्ट ने 'तक्षशिला' और 'मानसी' काव्यों के अतिरित्त विविध कविताएँ भी लिखी हैं, जो 'राका' और 'विसर्जन' में संकलित हैं।

इस प्रकार वर्तमान हिंदी कविता का प्रवाह अनेक धाराओं में होकर चल रहा है।