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सामान्य परिचय

ओर एकटक ताकता रह गया तब सत्यवती को क्रोध आ गया और उसने यह कह कर कि––

एक चित्त-हमैं चितवै जस जोगी चित जोग। धरम न जानसि पापी, कहसि कौन तैं लोग॥


शाप दिया कि 'तू कोढ़ी और व्याधिग्रस्त हो जा।'

ऋतुवर्ण वैसा ही हो गया और पीड़ा से फूट-फूट कर रोने लगा––

रोवै व्याधि बहुत पुकारी। छोहन ब्रिछ रोवैं सब झारी॥
बाघ सिंह रोवत बन माहीं। रोवत पंछी बहुत ओनाहीं॥

यह व्यापक विलाप सुनकर सत्यवती उस कोढ़ी के पास जाती है, पर वह उसे यह कहकर हटा देता है कि 'तुम जाओ, अपना हँसो खेलो।' सत्यवती का पिता राजा एक दिन जब उधर से निकला तब कोढ़ी के शरीर से उठी दुर्गंध से व्याकुल हो गया। घर जाकर उस दुर्गंध की शांति के लिये राजा ने बहुत दान पुण्य किया। जब राजा भोजन करने बैठा तब उसकी कन्या वहाँ न थी। राजा कन्या के बिना भोजन ही न करता था। कन्या को बुलाने जब राज के दूत गए तब वह शिव की पूजा छोड़कर न आई। इस पर राजा ने क्रुद्ध होकर दूतों से कहा कि सत्यवती को जाकर उसी कोढ़ी को सौंप दो। दूतों का वचन सुनकर कन्या नीम की टहनी लेकर उस कोढ़ी की सेवा के लिये चल पड़ी और उससे कहा––

तोहि छाँड़ि अब मैं कित जाऊँ। माइ बाप सौंपा तुव ठाऊँ॥

कन्या प्रेम से उसकी सेवा करने लगी और एक दिन उसे कंधे पर बिठाकर प्रभावती तीर्थस्नान कराने ले गई, जहाँ बहुत से देवता, मुनि, किन्नर आदि निवास करते थे। वहाँ जाकर सत्यवती ने कहा "यदि मै सच्ची सती हूँ तो रात हो जाय।" इस पर चारों ओर घोर अंधकार छा गया। सब देवता तुरंत सत्यवती के पास दौड़े आए। सत्यवती ने उनसे ऋतुवर्ण को सुंदर शरीर प्रदान करने का वर माँगा। व्याधि-ग्रस्त ऋतुवर्ण ने तीर्थ में स्नान किया और उसका शरीर निर्मल हो गया। देवताओं ने वहीं दोनों का विवाह करा दिया।

ईश्वरदास ने ग्रंथ के रचना-काल का उल्लेख इस प्रकार किया है––

भादौ मास पाष उजियारा। तिथि नौमी और मंगलवारा॥
नषत अस्विनी, मेष क चंदा। पंच जना सो सदा अंनदा॥