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सूर का मृत्युकाल सं० १६२० सर्वप्रथम हरिश्चन्द्र द्वारा अनुमान किया गया, जो ग्रियर्सन की बदौलत आज तक स्वीकार किया जाता रहा है ।प्रभुदयाल मीतल ने सूर-निर्णय में इनकी मृत्युकाल सं० १६४० के आसपास ठहराया है।

अन्त में जो दंत-कथा दी गई है, वह भारतेन्दु वाले लेख में नहीं है।

स्फिक्स एक काल्पनिक जीव है। जिसका धड़ शेर का और सर नारी का माना गया है । यह मिस्त्री कल्पना है ।

भारतीय लोग सूर को सर्वोच्च स्थान देते हैं। ग्रियर्सन की यह उक्ति इस कथन पर निर्भर है-

'सूर सूर, तुलसी ससी, उडगन केशवदास'

३८. परमानन्द दास-ब्रजवासी । १५५० ई० में उपस्थित । राग कल्पद्रुम । ३९. कुंभन दास-व्रजवासी । १५५० ई० में उपस्थित ।

राग कल्पद्रुम । ये दोनों वल्लभाचार्य ( संख्या ३४) के शिष्य थे और

अष्टछाप में सम्मिलित थे।

४०. चतुरभुज दास-१५६७ ई० में उपस्थित ।

| राग कल्पद्रुम । यह विट्ठलनाथ गोकुलस्थ ( संख्या ३५ ) के शिष्य थे और अष्टछाप में सम्मिलित थे । यही सम्भवतः यह दूसरे चतुर्भुज भी हैं, जिनका उल्लेख शिवसिंह ने किया है। गासी द तासी ने ( भाग १, पृष्ठ १४२ ) प्रेम सागर की भूमिका का हवाला देते हुए भागवत पुराण दशम स्कंध का दोहा चौपाइयों में व्रज भाषा में अनुवाद करने वाले एक चतुर्भुज मिसर का उल्लेख किया है ।

टि-सरोज के चतुर्भुज ( सर्वेक्षण २३०) कवित्त सवैया रचने वाले रीति कालीन श्रृंगारी कवि हैं, यह निश्चय ही अष्टछापी चतुर्भुजदास से भिन्न हैं। प्रियर्सन की कल्पना ठीक नहीं।

भागवत का अनुवाद करनेवाले चतुर्भुज मिश्र भी अष्टछाप चतुर्भुजदास से असंदिग्ध रूप से भिन्न हैं। एक तो इन चतुर्भुजदास ने केवल फुटकर पद दिखे, दूसरे यह गोरवा क्षत्रिय कुम्भनदास के पुत्र थे, अतः इन्हें चतुर्भुज मिश्र से नहीं मिलाया जा सकता।

४१. छीत स्वामी-१५६७ ई० में उपस्थित ।

रागकल्पद्रुम । यह विट्ठलनाथ ( संख्या ३५ ) के शिष्य और अष्टछाप के