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कवि थे । यह संभवतः वही छीत कवि हैं, जिनकी कविताएँ हजारा में हैं और जिनका समय शिव सिंह ने १६४८ ई० दिया है।

टि-सरोज के छीत कवि ( सर्वेक्षण २५० ), जिनकी रचनाएँ इजारा में थीं और जिनको सरोज में सं० १७०५ में उ०' कहा गया है, रीतिकालीन श्रृगांरी कवि हैं और अछापी छीत स्वामी से भिन्न हैं। ४२. नन्ददास रामपुर के ब्राह्मण | १५६७ ई० में उपस्थित ।।

रागकल्पन्दृुम । यह विट्ठल नाथ ( संख्या ३५ ) के शिष्य थे और इनका नाम अष्टछाप में परिगणित है। इनके सम्बन्ध में एक कहावत है-और सत्र गढ़िया, नन्ददास जड़िया ! इनके प्रमुख ग्रंथ हैं--(१) नाम माली,(२) अनेकार्थ, ( ३ ) पंचाध्यायी ( रागकल्पद्रुम) ( प्रकाशित, गीत गोविन्द के अनुकरण पर यह कविता है, देखिए गार्सो द तासी भाग १, पृष्ठ ३८७),(४) रुक्मिणी मंगल (रागकल्पद्रुम ), (५) दसम स्कंध, ( ६ ) दानलीला (७) मानलीला । यह अनेक मुक्तक कविताओं के भी रचयिता हैं ।

टि०–अनेकार्थ के नाम अनेकार्थ मंजरी, अनेकार्थ नाम साला और अनेकार्थे साल हैं। नाममाला वस्तुतः मानमंजरी है। इसके नाम भान संजरी या नासमंजरी या नाममाला या नाम चिन्तामणि माला हैं। पंचाध्यायी से अभिप्राय रास पंचाध्यायी है, क्योंकि यह ग्रंथ बरावर प्रकाशित होता रहा है । यह सिद्धान्त पंचाध्यायी अभिप्रेत नहीं है । रास पंचाध्यायी और गीत गोविन्द में किसी प्रकार का साम्य नहीं । अतः यह गीत गोविन्द के अनुकरण पर लिखी गई, यह कथन पूर्णतया अशुद्ध है । दानलीला नन्ददास की एक लघु रचना है, यह नजरत्न दास द्वारा संपादित नन्ददास ॐथावळी में है । मनिळीला संभवतः मानमंजरी या नाममाला का ही अन्य नाम है। अनेक मुक्तक कविताओं से ग्रियर्सन का अभिप्राय फुट पदों से है। ४३. गोविन्द दास--ब्रजवासी । १५६७ ई० में उपस्थित ।

रागकल्पद्रुम । यह विट्ठलनाथ ( संख्या ३५ ) के शिष्य थे । इनकी गणनाअष्टछाप में है। ४४. अग्रदास-आमेर (जयपुर ) के अन्तर्गत गलता के रहने वाले । १५७५ ई० में उपस्थित है।

राग कल्पद्रुम । यह कृष्णदास पयअहारी ( संख्या ३६ ) के शिष्य थे, जो सूरदास की हो भौति स्वयं वल्लभाचार्य के शिष्य थे। यह.स्वयं ( अरदास ) भक्तमाल के प्रसिद्ध रचयिता नाभादास ( संख्या ५१ ) के गुरु थे । राग कल्पद्रुम में इनके अनेक प्रगति पद हैं । यह संभवतः वही