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कवि हैं, जिनका उल्लेख करते हुए शिवसिंह ने कहा है कि यह १५६९ ई० में उत्पन्न हुए थे और नीति संबंधी कुंडलिया, छप्यय और दोहा छंदों के रचयिता हैं।

टि-अग्रवाल कृष्णदास पयअहारी के शिष्य थे, इसमें संदेह नहीं। पर कृष्णदास पयहारी वल्लभाचार्य के शिष्य नहीं थे। वल्लभाचार्य के शिष्य कृष्णदास अधिकारी थे। ग्रियर्सन ने सरोज के अगर कवि ( संख्या ३४ ) को अग्रदास से अभिन्न होने की जो संभावना व्यक्त की है, वह यथार्थ है ।

४५. केवलराम कवि-व्रजवासी । १५७५ ई० में उपस्थित ।

   राग कल्पद्रुम । भक्तमाल में उल्लेख । कृष्णदास पयहारी ( सं ० ३६ )के शिष्य ।

टि-केवलराम ब्रजबासी बृंदावन में रहते थे। इनकी छाप 'केवलराम वृंदावन जीवन है। यह कृष्णभक्त गोसाई थे। इनका निश्चित समय ज्ञात नहीं। यह उन केवल' से भिन्न हैं, जिनका नामोल्लेख भक्तमाल के ३९ वें छप्पय में कृष्णदास पयअहारी के शिष्य वर्ग की सूची में हुआ है। ग्रियर्सन के यह केवलराम केवल 'केवल' हैं, और इनके ब्रजवासी होने की भी संभावना नहीं, यह राजस्थानी रहे होंगे। यह भी निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता कि यह कवि थे ही! राग कल्पद्रुम में 'केवलराम वृंदावन जीवन' के पद हैं,'केवल' के नहीं।। (-सर्वेक्षण १२३)

४६. गदाधर दास-१५७५ ई० में उपस्थित । यह कृष्णदास पयहारी ( संख्या ३६ ) के शिष्य थे। यह संभवतः वही गदाधर हैं, जिनका उल्लेख शिवसिंह ने शांत रस के कवि के रूप में किया है ।

टि०-भक्तमाल छप्पय ३९ में कृष्णदास पयअहारी के शिष्यों में एक 'गदाचारी' हैं, इन्हें गदाधरदास माना जा सकता है, जैसा कि टीकाकारों ने स्वीकार भी किया है। कृष्णदास के इन शिप्य का कवि होना ज्ञात नहीं है। यदि यह कवि होंगे तो राम का गुणानुवाद करने वाले होंगे। सरोज के जिन शांत रस के गदाधर कवि से इनके अभेद की संभावना की गई है, उनके संबंध में कोई जानकारी सुलभ नहीं । अत: इन दोनों के तादात्म्य के संबंध में भी कुछ नहीं कहा जा सकता । -सर्वेक्षण १५७

४७. देवी कवि–उदयपुर (मेवाड़) के रहने वाले । १५७५ ई० में उपस्थित ४८. कल्यान दास-व्रजवासो। १५७५ ई० में उपस्थित