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४९. हटी नारायन-ब्रजवासी। १५७५ ई॰ में उपस्थित

५०. पदुम नाम-ब्रजवासी। १५७५ ई॰ में उपस्थित

रागकल्पद्रुम—ये चारो कृष्णदास पय अहारी ( संख्या ३६) के शिष्य थे।

टि॰—निश्चय ही ये चारों कृष्णदास पय अहारी के शिष्य थे, अतः इनका समय ठीक ही है। पर कल्याण दास, हटी नारायण और पदुमनाम को ब्रजवासी कहा गया है, यह ठीक नहीं प्रतीत होता। कृष्णदास पय अहारी के सभी शिष्य गण कवि भी थे, इसका कोई प्रमाण नहीं।

देवा का उल्लेख सरोज (सर्वेक्षण ३७०) में है। इनकी कविता भी २७८ संख्या पर उदाहृत है। अतः यह कवि हैं।

सरोज में कृष्णदास पयहारी के शिष्य कल्याणदास को कवि स्वीकार किया गया है। पर इन्हें ब्रजवासी नहीं कहा गया है। साथ ही इनकी कविता का जो उदाहरण दिया गया है, वह गो॰ विट्ठलनाथ के पुत्र गो० गोकुलनाथ के शिंप्य, वल्लभ संप्रदाय के वैष्णव कल्याणदास ब्रजवासी की रचना है । अतः कृष्णदास पय अहारी के एक शिष्य कल्याणदास का होना सिद्ध है (भक्तमाल छप्पण ३९), पर उनका कवि होना सिद्ध नहीं।

इसी प्रकार भक्तमाल छप्पय ३९ में कृष्णदास पयहारी के शिष्यों में हटीनारायण का नाम अवश्य है, पर इनके कवि होने का कोई प्रमाण नहीं ।सरोज में भी इन्हें स्वतंत्र कवि के रूप में ग्रहण नहीं किया गया है, यद्यपि पद्मनाभ के प्रकरण में इन्हें भी महान कवि मान लिया गया है।

सरोज में पद्मनाभ को कृष्णदास पयअहारी का शिष्य कहा गया है। ब्रजवासी भी कहा गया है। इनके पदों के रागसागरोद्भव में होने का भी उल्लेख है । साथ ही कृष्णदास के शिष्य कील्ह, अनदास, केवलराम, गदाधर, देवा, कल्याण, हटी नारायण और पदुमनाभ सभी के महान कवि होने का उल्लेख है। इनमें से केवल अप्रदास और देवा का कवि होना सिद्ध है। प्रायः एक ही समय में तीन पद्म नाम हुए हैं। (१) कबीर के शिष्य पद्मनाभ-भक्तमाल छप्पय ६८ (२) कृष्णदास पयअहारी के शिष्य-भक्तमाल छप्पय ३९; (३) वल्लभाचार्य के शिष्य । इनमें से बल्लभाचार्य के शिष्य निश्चित रूप से कवि थे। सरोज में विवरण दूसरे पद्मनाभ का और उदाहरण तीसरे का दिया गया है। प्रथम एवं द्वितीय के कवि होने का कोई प्रमाण नहीं।

(-सर्वेक्षण ४७०)

५१. नाभादास कवि-उपनाम नारायणदास, दक्षिण के रहनेवाले। १६०० ई॰ में उपस्थित।