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लेखकों के अनुसार नाभादास का असली नाम है, नाभादास तो उनका उपनाम है। नाभादास संभवतः वही नारायणदास कवि हैं, जिनको शिवसिंह ने १५५८ ई० में उत्पन्न कहा है और जिन्हें हितोपदेश तथा राजनीति का भाषानुवाद करने वाला माना है । संभवतः यह वह नारायणदास भी हैं, जिन्हें शिवसिंह ने छंदसार नामक ५२ छंदों के एक पिंगल ग्रंथ का कर्ता वैष्णव माना है।

 टि-लाभादास और नारायणदास दो व्यक्ति हैं। दोनों अग्रदास के

शिष्य हैं। नारायणदास ज्येष्ठ हैं, नाभादास कनिष्ठ । नारायणदास ने सं० १६४९ वि० में भक्तमाळ लिखी, उसमें १०८ छप्पय थे । तदनंतर नाभादास ने इसमें कुछ और परिवर्द्धन किया। भाज भक्तमाल जिस रूप में उपलब्ध है, वह नाभादास का दिया हुआ है । नाभादास की मृत्यु सं० १७१९ वि० में हुई। अतः यह संपादन परिवर्द्धन कार्य १६४९ और १७१९ के बीच किसी समय सं० १७०० वि० के आस पास हुभा ।

                           (-सर्वेक्षण ४०१)
  सरोज में वर्णित हितोपदेश एवं राजनीति के अनुवादक नारायणदास

( सर्वेक्षण ४०८) इन नाभादास और नारायणदास से निश्चय ही भिन्न हैं। यह हितोपदेश वाले नारायणदास ऊँच गाँव के नारायण भट्ट ( सर्वेक्षण ४०६) से अभिन्न हो सकते हैं। इसी प्रकार छंदसार पिंगल के रचयिता नारायणदास वैष्णव (सर्वेक्षण ४०९) भी इनसे मिले हैं। यह ग्रंथ सं० १८२९ में चित्रकूट में रची गया था ।

५२. कान्हरदास कवि-ब्रजवासी। १६०० ई० में उपस्थित ।

   राग कल्पद्रुम । यह मथुरा के विट्ठलदास चौवे के पुत्र थे। इनके घर पर एक सभा हुई थी, जिसमें नाभादास ( संख्या ५१ ) को गोसाईं की उपाधि मिली थी।

५३. श्री भट्ट कवि-जन्म १५:४४ ई० ।

 राग कल्पद्रुम । प्रिया प्रीतम विलास वर्णन में यह अत्यंत दक्ष थे, ऐसा कहा जाता है । संभवतः यह नीमादित्य के शिष्य केशवभट्ट ही हैं । ( देखिए विलसन कृत 'रेलिजस सेक्टस आफ़ द हिंदूज, भाग १, पृष्ठ १५१)। 
टि०--श्री भट्ट और केशव भट्ट एक ही व्यक्ति नहीं हैं। श्री भट्ट केशव

भट्ट के शिष्य हैं । १५४४ ई० इनका जन्मकाल नहीं है। यह इनका उपस्थिति काल है। (–सर्वेक्षण ८३४)