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५४. व्यास स्वामी, उपनाम हरि राम सुकल-बुंदेलखण्ड के अंतर्गत उरछा के रहने वाले । १५५५ ई० में उपस्थित ।

  राग कल्पद्रुम । यह देवबन्द के गौड़ ब्राह्मण थे और राधावल्लभी संप्रदाय में दीक्षित थे । १५५५ ई० में जब यह ४५ वर्ष के थे, यह बूंदाबन में बस गए और हरियासी नामक एक नया वैष्णव संप्रदाय चलाया । विलसन के अनुसार ( रेलिजस सेक्ट्स आफ द हिंदूज, भाग १, पृष्ठ १५१ ) यह और केशव भट्ट नीमावत सम्प्रदाय के संस्थापक नीमादित्य ( राग कल्पद्रुम) के शिष्य थे।
  टि-हरीराम शुक्ल कथा वाचक होने के नाते व्यास भी कहलाते थे।

यह ओरछा वासी थे, देवबंद वासी नहीं । हित हरिवंश के पिता केशव प्रसाद मिश्र भी व्यास कहलाते थे । यही व्यास देवबंद जिला सहारनपुर के रहने वाले थे और गौड़ब्राह्मण थे।। (-सर्वेक्षण ९७०)

 हरीराम व्यास राधावल्लभ संप्रदाय में कभी भी नहीं दीक्षित हुए ।

इन्होंने अपने पिता समोखन शुक्ल से दीक्षा ली थी | हित हरिवंश से इन्हें अवश्य ही अपनी साधना में पर्याप्त सहायता मिली।

 हरिव्यासी सम्प्रदाय भी इनका चलाया हुआ नहीं है। ऊपर उल्लिखित

श्रीभट्ट के शिष्य हरि व्यासदेव थे ! इन्ही हरि व्यास देव के शिष्य हरिव्यासी कहलाते हैं।

केशव भट्ट अवश्य हो निम्बार्क सम्प्रदाय के थे। हरीराम व्यास का उक्त

सम्प्रदाय से कोई संबंध नहीं। (-सर्वेक्षण ५१५)

५५. परशुराम-व्रजवासी । जन्म १६०३ ई० ।

राग कल्पद्रुम, दिग्विजय भूषण । यह श्री ( केशव ) भट्ट और हरिव्यास के अनुयायी थे । ( देखिए, विलसन, रेलिजस सेक्ट्स आफ़ द हिंदूज़, पृष्ठ १५१)। यह निश्चित नहीं है कि राग कल्पद्रुम और दिग्विजय भूषण के परशुराम एक ही हैं।
 टि०--परशुराम ब्रजवासी हरिव्यास देव के शिष्य और निवार्क संप्रदाय

के वैष्णव थे। दिग्विजय भूषण में जिन परशुराम के कवित्त हैं, वे कोई रीतिकालीन शृङ्गारी कवि हैं और इनसे निश्चय ही भिन्न हैं ( सर्वेक्षण ४७३)। १६०३ ई० (सं१६६० वि०) उपस्थिति काल हैं। 'विप्रमती' का रचना काळ सं० १६७७ वि० है ।।। (-सर्वेक्षण ४७४)