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५६. हित हरिवंश स्वामी गोसाँईं--१५६० ई० में उपस्थित ।

  राग कल्पद्रुम । इनके पिता व्यास स्वामी उपनाम हरिराम सुकल ( संख्या ५४) थे । यह अत्यंत प्रसिद्ध कवि हैं। इन्होंने संस्कृत में राधा सुधानिधि और भाषा में ‘हित चौरासी धाम' लिखा । इनके शिष्यों में कवि नरबाहन( संख्या ५७ ) थे । देखिए विलसन, रेलिजस सेक्ट्स आफ़ द हिंदूज़, पृष्ठ १७७ और ग्राउस, जर्नल ऑफ़ एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल, जिल्द ४७( १८७८ ई० ), पृष्ठ ९७, जहाँ इनकी दोनों कृतियों के नमूने और उनके अनुवाद दिए गए हैं ।
 टि–हित हरिवंश के पिता का नाम व्यास मिश्र और पितृव्य का केशव प्रसाद मिश्र था । यह व्यास मिश्र हरीराम व्यास से भिन्न हैं। हरीराम व्यास तो हित हरिवंश के कुछ अंशों में शिष्य भी कहे जा सकते हैं और वय में भी ।उनसे पर्याप्त कनिष्ठ थे । इनके हिंदी ग्रंथ का नाम ‘हित चौरासी है, न कि 'हित चौरासी धाम’ | हरिवंश जी का जन्म सं० १५५९ वैशाख शुक्ल ११ को और देह वसन आश्विन शुक्ल पूर्णिमा सं० १६०९ वि० को हुआ । अतः१५६० ई० या सं० १६१७ में यह उपस्थित नहीं थे और जंक तिथि अशुद्ध है।
                        —सर्वेक्षण ९७०

५७, नरबाहन जी कवि---भोगाँव वासी । १५६० ई० में उपस्थित ।

यह हित हरिवंश ( संख्या ५६ ) के शिष्य थे । इनका उल्लेख भक्तमाल में हुआ है ।
 टि०—हित हरिवंश ने. प्रसन्न होकर अपने दो पदों में इनकी छाप रख दी थी, जो हित चौरासी के ११, १३ संख्याओं पर संकलित हैं। मरबाइन के नाम पर यही दो पद मिलते हैं। इनके गाँव का नाम भैगाँव है, जो वृंदावन से चार मील दूर है। -सर्वेक्षण ४०३

५८. ध्रुवदास--१५६० ई० में उपस्थित ।

राग कल्पद्रुम । हित हरिवंश ( संख्या ५६ ) के शिष्य और अत्यधिक लिखने वाले कवि । श्री ग्राउस ने जर्नल अफ़ एशियाटिक सोसाइटी अफ़ बंगाल, जिल्द ४७ (१८७८ ई०), पृष्ठ ११३ में इनके ग्रंथों की पूर्ण सूची दी है ।
 टि०–ध्रुवदास स्वप्न में हित हरिवश के शिष्य हुए थे। इनके ४० से भी अधिक छोटे छोटे ग्रंथ हैं। इनमें से सभामंढली का रचनाकाल सं० १६८१, वृन्दावन सत का १६८६ और रहस्य मंजरी का सं० १६९८ है । ग्रियर्सन में दिया संवत अशुद्ध हैं।

हिंदी साहित्य का इतिहास पृष्ठ १९३-९४