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गायक हो गए और सूरदास के अभिन्न मित्र हो गए। (देखिए आईन-ए-अक-बरी का ब्लाचमैन कृत अनुवाद, पृष्ठ ४०३, ६१२) । जब तानसेन ने दरबार में पहली बार गाया, कहा जाता है, बादशाह ने २ लाख पुरस्कार में दिया ।इनकी अधिकांश रचनाएँ अकबर के नाम पर हैं और इनकी लय और राग अब तक लोगों द्वारा हिन्दुस्तान में दुहराए जाते हैं। संगीत पर इनका सर्वप्रसिद्ध ग्रंथ है “संगीतसार ( रागकल्पद्रुम )।

टि०–तानसेन ( त्रिलोचन पांडेय ) ने हरिदास स्वामी से पिंगळ के

साथ-साथ संगीत विद्या भी पड़ी थी। इनका जन्मकाल सं० १५७८ एवं मृत्युकाल सं० १६४६ वि० है ।। (-सर्वेक्षण ३२०)

६१. भगवत रसित-व्रजान्तर्गत वृन्दावन के निवासी । १५६० ई० में उपस्थित |

यह माधवदास ( संख्या २६ ) के पुत्र और हरिदास ( सं० ५९ ) के शिष्य थे । यह कुछ प्रसिद्ध कुण्डलियों के रचयिता हैं ।।
टि०–एक भगवन्त मुदित नामक वैष्णव हुए हैं जिनके पिता का नाम

माधवदास था और जिन्होंने हरिदास से दीक्षा की थी, यह हरिदास वृन्दावन मैं गोविन्ददेव जी के मन्दिर के अधिकारी थे और प्रसिद्ध स्वामी हरिदास ले भिन्न थे। भगवन्त मुदित की विवरण भक्तमाल छप्पय १९८ में है। इन्होंने सं० १७०७ में वृन्दावन शतकं नाम थ रचा था । ग्रियर्सन ने वस्तुतः इन्हीं का विवरण दिया है, पर नाम और समय में भूल हो गई है।

भगवत रसिक का जन्मकाल १७९५ है। इनका रचनाकाल सं० १८३०-५० वि० है। यह टही संम्प्रदाय के थे। इन्हीं की कुण्डलियाँ सुप्रसिद्ध हैं। सरोज एवं ग्रियर्सन दोनों में भगवत रसिक और भगवन्त मुदित का घालमेल हो गया है। सरोज के प्रारम्भिक संस्करणों में भगवत रसिक के स्थान पर रमित ही छपा था ।। (-सर्वेक्षण ५९८)

६२. विपुल विठ्ठल-व्रजान्तर्गत गोकुल निवासी । १५६० ई० में उपस्थित ।।

 रागकल्पद्रुम । यह हरिदास ( सं ० ५९ ) के मामा और शिष्य थे। यह मधुवन के राजा के दरबारी थे और इनकी बहुत सी रचनाएँ रागकल्पद्रुम में हैं।
टि-सरोज में लिखा है-"यह महाराज मधुवन में बहुधा रहा करते

थे ।" इसी के अंगरेजी अनुवाद की पुनः हिंदी अनुवाद यह है—“यह मधुवन के राजा के दरबारी थे । ग्रियर्सन ने सरोज के वाक्य को ठीक से नहीं समझते हैं।मधुवन के स्थान पर ‘निधुवन’ होनी चाहिए। यह वृन्दावन के अन्तर्गत एक