पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
अध्याय ५
मुगल दरबार

१०३. छेम कवि-डलमऊ जिला रायबरेली के कवि और बन्दीजन, १५३० ई० में उपस्थित।

यह बादशाह हुमायूँ (१५३०-४० ई०) के दबारी कवि थे। सम्भवतः यही शिव सिंह द्वारा उल्लिखित खेम बुन्देलखंडी भी हैं। देखिए संख्या ८७ और ३११.

टि०-खेम बुन्देलखंडी से इनकी अभिन्नता स्थापित करने के कोई भी सूत्र सुलभ नहीं।

१०४. अकबर बादशाह-शासन काल १५५६-१६०५ ई०

अब हम अकबर बादशाइ के प्रभापूर्ण दरबार और वहाँ चमकने वाले कवियों रूपी नक्षत्र पुंज की झलक ले सकते हैं। मलिक मुहम्मद(सं०३१) के वाद उल्लिखित कवियों में से अधिकांश, विद्या के इस बड़े संरक्षक बादशाह के सम-सामयिक थे । यह देखा जा सकता है कि अकबर बादशाह को शासन काल और इंगलैण्ड की महारानी एलिजावेथ का शासनकाल प्रायः एक ही है। और इन दोनों शासकों के शासनकाल साहित्यिक प्रतिभा के एक असाधारण एवं अभूतपूर्व स्फुरण से परिपूर्ण हैं; और यदि तुलसीदास और सूरदास की शेक्सपियर तथा स्पेसर के साथ सचमुच ही तुलना की जाय, तो ये भारतीय कवि बहुत पीछे नहीं रहेंगे । निम्नांकित कवियों के अतिरिक्त तानसेन (सं०६०) और सूरदास (सं० ३७) भी इनके दरबारी कवि थे। इनकेसम्बन्ध में विशेष विवरण पिछले अध्याय में दिया जा चुका है ।

अकबर का हिंदी कवियों में परिगणित किए जाने का अधिकार कुछ मुक्तक रचनाओं पर ही निर्भर है। इनमें उसकी छाप अकबर राय है । सम्भवतः ये वस्तुतः तानसेन द्वारा विरचित हैं । ( देखिए सं०६०)

टिo-'तुलसी और सूर शेक्सपियर और स्पेंसर से तुलना में बहुत पीछे नहीं रहेंगे'-यह मत्तव्य निःसंदेह विवादास्पद है। इसका विस्तार मैं यहाँ नहीं करना चाहता ।

सूरदास कभी अकबरी दरवार से सम्बद्ध नहीं रहे।