पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१३५

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अध्याय ६ तुलसीदास । १२८, गोसाँई तुलसीदास–१६०० ई० में उपस्थित । मृत्यु १६२४ ई० ।। राग कल्पद्रुम । अब हम मध्यकालीन भारतीय काव्यगगन के श्रेष्ठतम . नक्षत्र, प्रामाणिकता मैं 'बाल्मीकि के संस्कृत ग्रंथ से प्रतिद्वंदिता करनेवाले सुप्रसिद्ध भाषा रामायण ( राग कल्पद्रुम) के रचयिता, तुलसीदास के प्रसंग पर आते हैं। ___मुझे अत्यंत दुःख है कि उपलब्ध सामग्री अत्यल्प है। मुझे सूचना मिली है कि पसका के रहनेवाले बेनीमाधवदास ने जो कवि के साथ ही रहते थे, कवि के जीवन का विस्तृत विवरण 'गोसाई चरित्र' नाम से लिखा है, और यह मेरे लिए अत्यधिक अधीरता की बात है। यद्यपि मैंने इस ग्रंथ की बहुत दिनों तक खोज की है, पर मुझे इसकी कोई प्रति नहीं मिली; और मैं अपने इस विवरण को सुख्यतया भक्तमाल के गूढ़. छप्पयों और प्रियादास तथा अन्य लोगों द्वारा लिखी गई इसकी टीकाओं के आधार पर ही प्रस्तुत करने के लिए विवश हुआ हूँ। इनका मूल और अक्षरशः अनुवाद, रामायण के श्री ग्राउस कृत अनुवाद की भूमिका में मिलेगा, जिससे मैंने पूर्ण सहायता ली है। . . भारत के इतिहास में तुलसीदास का महत्व जितना भी अधिक ओंका जाता है, वह अत्यधिक नहीं है । इनके ग्रंथ के साहित्यिक महत्व को यदि ध्यान में न रक्खा जाय, तो भी भागलपुर से पंजाब और हिमालय से नर्मदा तक के विस्तृत क्षेत्र में, इस ग्रंथ का सभी वर्ग के लोगों में समान रूप से समादर पाना निश्चय ही ध्यान देने योग्य है। "राजमहल से झोपड़ी तक यह ग्रंथ प्रत्येक हाथ में है, और हिंदू समाज के छोटे-बड़े धनी-निर्धन, बालक वृद्ध चाहे जो हों, प्रत्येक वर्ग द्वारा समान रूप से पढ़ा; सुना और समझा जाता है। पिछले तीन सौ वर्षों से हिंदू समाज के जीवन, आचरण और कथन में यह घुलमिल गया है, और अपने काव्यगत सौंदर्य के कारण यह न केवल उनका प्रिय एवं प्रशंसित ग्रंथ है, बल्कि उनके द्वारा पूजित भी है और उनका धर्म ग्रंथ हो । १. श्री ग्राउस (जिनसे यह उद्धरण लिया गया है ) कहते हैं कि पेशेवर संस्कृत पंडित तुलसीदास के इस ग्रंध को निरक्षर जनता के प्रति अनुचित रियायत समना कर इससे घृणा करते हैं, किन्तु मेरा अनुभव ऐसा नहीं है।