पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१३६

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( १२५ ) गया है। यह १० करोड़ जनता का धर्मग्रंथ है और उनके द्वारा यह उतना ही भगवत्प्रेरित माना जाता है, अंगरेज पादरियों द्वारा जितनी भग- वत्प्रेरित 'बाइबिल' मानी जाती है। पंडित लोग वेट और उपनिषद की बातें कर सकते हैं, और कुछ उनका अध्ययन भी कर सकते हैं, कुछ कह सकते हैं कि उनका विश्वास पुराणों के साथ संलग्न है; किंतु हिंदुस्तान की अधिकांश जनता के लिए चाहे वह विद्वान हो अथवा अविद्वान, चरित्र का एक मात्र प्रतिमान तुलसी- कृत रामायण है। हिंदुस्तान के लिए सचमुच यह परम सौभाग्य की बात है कि यह ऐसा है, क्योंकि इसने इस क्षेत्र को शैत्र धर्म की तांत्रिक अश्लीलताओं से बचा लिया है। रामानन्द उत्तरी भारत के प्रारम्भिकं रक्षक हैं, जिन्होंने उस दुर्भाग्य से इसे बचाया जो कि बंगाल के ऊपर पड़ा। लेकिन तुलसीदास तो वह महान देवदूत हैं जो उनके सिद्धान्त को पूर्व और पश्चिम ले गए तथा उसे स्थिर विश्वास में परिणत कर दिया । जिस धर्म का उपदेश उन्होंने किया,वह अत्यन्त सरल साथ ही विशिष्ट- राम नाम में पूर्ण विश्वास है । अनैतिकता के उस युग में जब हिन्दू समाज के बन्धन शिथिल हो रहे थे और मुगल साम्राज्य संगठित हो रहा था, इस ग्रन्थ की सबसे विशिष्ट बात इसकी कठोर नैतिकता है, जो इस शब्द के किसी भी अर्थ में मानी जा सकती है । तुलसी प्रतिवासी के प्रति अपने कर्तव्य की शिक्षा देनेवाले महान उपदेशक थे। बाल्मीकि ने भरत को कर्तव्य-परायणता, लक्ष्मण की भ्रातृभक्ति और सीता के पतिव्रत की प्रशंसा की है, लेकिन तुलसी ने तो आदर्श ही प्रस्तुत कर दिया है। - इसी प्रकार उस घोर विलासिता के युग में, रामायण से बढ़कर मर्यादापूर्ण और पवित्र कोई दूसरा ग्रन्थ नहीं है । वह स्वयं कहते हैं और ठीक कहते हैं :- . अति खल जे विषयी बग.कागा 'एहि सर निकट न जाहिं अभागा संबुक भेक सेवार समाना इहाँ न विषय कथा रस नाना तेहि कारन आवत हियँ हारे - 'कामी काक बलाक बिचारे" १. मूल में इन चौपाइयों के स्थान पर इनका यह भावार्थ दिया हुआ है-अनु० Here are no. prurient seductive stories, like snail's. frogs and scmm on the pare Vater of Ram's legend; and therefore the lustful crow and the greedy cranes, if they do come, are disappointed." " ..