पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१३७

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दूसरे वैष्णव कवि जो कृष्ण भक्ति की उपदेश करते थे, अपने श्रोताओं को आकृष्ट करने के लिए अपनी भारत को प्रायः बार विलासिनी बना देते थे; लेकिन तुलसीदास ने अपने देशवासियों में उदार विश्वास किया और उनका विश्वास पूर्णरूपेण प्रतिफलित और पुरस्कृत भी हुआ है। तुलसीदास सरवरिया ब्राह्मण थे । यह सोलहवीं शती के प्रारम्भ में उत्पन्न हुए थे और १६२४ ई० में पर्याप्त दीर्घायु होकर दिवंगत हुए, जैसा कि पुरानी कविता है :- संवत सोलह सै असी, असी गंग के तीर सावन सुकला सप्तमी, तुलसी तजेउ शरीर सावन सुदी ७, संवत् १६८० को, तुलसी ने गंगा के किनारे असी घाट . पर शरीर त्याग किया ।। | भक्तसिन्धु और वृहद् रामायण माहात्म्य के अनुसार इनके पिता का नाम आत्माराम और माता का हुलसी था तथा वे हस्तिनापुर में पैदा हुए थे। लेकिन दूसरे प्रमाणों के अनुसार वे चित्रकूट के निकट हाजीपुर में उत्पन्न हुए थे | जो हो, सामान्य परम्परा तो यह है कि जमुना तट स्थित, बाँदा जिले के । राजापुर को उनकी जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है। लड़कपन में यह सूकरखेत ( सोरों ) में रहे, जहाँ पहली बार रामभक्ति का उदय इनमें हुआ । प्रियादास ( संख्या ५१ और ३१९ ) के अनुसार इनकी पत्नी ने पहले पार्थिव प्रेम को दिव्य प्रेम में परिणत करने के लिए प्रोत्साहित किया और उसकी प्रबोध-वाणी से उत्तेजित होकर इन्होंने उसका परित्याग कर दिया और बनारस चले गए, जहाँ इन्होंने अपने जीवन का अधिकांश, अयोध्या, मथुरा, वृन्दावन, कुरुक्षेत्र, प्रयाग ( इलाहाबाद ), पुरुषोत्तमपुरी और अन्य तीर्थ स्थानों में यदा-कदो जाते हुए, बिताया । ( कुछ ग्रंथों की तिथियों को छोड़ ) उनके जीवन का एक मात्र तथ्य, जिसके सम्बन्ध में यथार्थ असंशय है, यह है कि ये आनन्द राय और कन्हई के बीच जमीन के एक झगड़े के सम्बन्ध में पञ्च । बनाए गए थे। इनके हाथ का लिखा हुआ पञ्चायतनामा अब भी उपलब्ध है, इसकी तिथि उनकी मृत्यु से ११ वर्ष पहले की, संवत् १६६९ है । इसका एक फोटो, प्रत्यक्षरीकरण और अनुवाद इस ग्रंथ में जोड़ दिए गए हैं । प्रियादास द्वारा वर्णित और श्री ग्राउस द्वारा रामायण के अपने अनुवाद की भूमिका में सन्निहित, कुछ दन्त-कथाएँ संक्षेप में यहाँ दी जा रही हैं। एक कृतज्ञ भूत, १. इस उद्धरण के पश्चात् दोहे का अंग्रेजी अनुवाद भी दिया हुआ है।--अनुवादक. . . २. रामायण बालकांड दोहा ८७.