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अंतर्दर्शन

ग्रियर्सन का जीवन परिचय

डाक्टर ग्रियर्सन का जन्म आयरलैंड के डबलिन परगने में, राथफर्नहम घराने में ७ जनवरी १८५१ ई० को हुआ था। इनको पूरा नाम जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन था। यही नाम इनके पिता का भी था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर एवं सेंट बी० के स्कूल में हुई। १७ वर्ष की वय में इन्होंने उच्च शिक्षा के लिए डबलिन के प्रसिद्ध ट्रिनिटी कालेज में प्रवेश किया। यहाँ से इन्होंने बी० ए० किया। इन्होंने राबर्ट एटकिंसन से संस्कृत एवं मीर औलाद अली से हिन्दुस्तानी सीखी। इन भारतीय भाषाओं में अच्छी योग्यता प्राप्ति के लिए इन्हें विश्वविद्यालय ने पुरस्कृत किया था।

१८७१ ई० में ग्रियर्सन ने भारतीय सिविल सर्विस की परीक्षा पास की। १८७३ ई० में यह हिन्दुस्तान आए। यहाँ यह बंगाल के जैसोर जिले में नियुक्त हुए। कुछ ही दिनों बाद इनकी बदली अकाल के महकमे में होगई और यह बिहार की दुर्भिक्ष पीड़ित प्रजा की रक्षा के लिए भेजे गए। अब इनकी नियुक्ति तिरहुत में हुई। यहाँ की भाषा इन्हें बँगला और हिन्दी से भिन्न जान पड़ी। इन्होंने समझा कि जो यूरोपियन भारत सरकार की सेवा में आते हैं, वे प्रायः बँगला या हिन्दुस्तानी जानते हैं, पर केवल इन दो भाषाओं से काम नहीं चल सकता। यहीं इन्हें इस भाषा के कोष और व्याकरण की आवश्यकता प्रतीत हुई।

अकाल समाप्त होने पर ग्रियर्सन ने हबड़ा, मुर्शिदाबाद और रंगपुर आदि जिलों में काम किया। इसी समय आप बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी में सम्मिलित हुए और रंगपुर की विचित्र भाषा का व्याकरण बनाया। इन्होंने उक्त भाषा के नमूने भी प्रकाशित किए। सन १८७७ में आप दरभंगा जिले में मधुबनी के सब डिविजनल आफिसर हुए। यहाँ यह ३ वर्ष रहे। इसी बीच इन्होंने देशी पंडितों की सहायता से मैथिली भाषा का एक सांगोपांग व्याकरण बनाया। यहाँ मिलने के लिए आने वाले प्रत्येक पंडित को आप एक जोड़ा धोती और दो रुपया नक़द बिदाई में देते थे।

१८८० ई० में ग्रियर्सन अस्वस्थ हो गए। अतः यह विलायत वापस चले गए। वहाँ इन्होंने अपना विवाह किया और उसी वर्ष पुनः भारत लौट