पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१४५

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( १३४) ने ठीक लिखा है या नहीं। इस प्रकार उसने प्रस्तावित संशोधनों के बादलों को उड़ा दिया । इसी प्रकार यह श्री ग्राउस के लिए कहना शेष रह गया था कि तुलसीदास प्रकृति के बारे में अपने टीकाकारों से अधिक जानते थे। इस कवि की रचनाओं के शुद्ध संस्करण की आवश्यकता की ओर संकेत करना ही अब शेष रह जाता है। इस समय सबसे अच्छा संस्करण पंडित राम- जसन का है; परन्तु उन्होंने भी अन्य संपादकों के समान प्राप्त प्रतियों का एक नूतनीकृत संस्करण ही मुद्रित किया है। मैंने इसको मूल से बड़ी सावधानी के साथ मिलाया है और इस स्थिति में हूँ कि कह सकूँ कि इससे बढ़कर भ्रामक किसी अन्य बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती। तुलसीदास ने शब्दों को प्राचीन बोली में, ध्वनि की दृष्टि से । उस ढंग से लिखा था जिस देग से वे उनके समय में उच्चरित होते थे। मुद्रित प्रतियों में बोली आधुनिक हिन्दी के स्तर पर परिवर्तित कर दी गई है और वर्तनी भी पाणिनी के नियमों के अनुकूल सुधार दी गई है। बोली के आधुनिकीकरण के उदाहरण ये हैं:- तुलसीदास प्राकृत और अपभ्रंश के नियमों का अनुसरण करते हुए कर्ताकारक एक वचन के अन्त में 'उ' का प्रयोग करते हैं और 'अ' को रचना में अन्य विहित कार्यों के लिए छोड़ देते हैं। इस प्रकार उन्होंने लिखा था-कपि कटकु, प्रबल मोह दलु इत्यादि पर सभी आधुनिक संस्करणों में आधुनिक उच्चारण के अनुकूल 'दल' मिलता है। इसी प्रकार आधुनिक संपादक मूल पसाउ' के लिए 'प्रसाद', 'भुअंगिनी के लिए 'भुजंगिनी', 'जागबलिकु' के लिए 'याज्ञवल्क्य ‘बन्दउँ के लिए ‘बन्दौं’, ‘भगति' के लिए भक्ति इत्यादि लिखते हैं। प्रायः प्रत्येक .:: चरण से उदाहरण एकत्र किए जा सकते हैं। वर्तनी सम्बन्धी परिवर्तन भी : इतने ही संख्याधिक हैं। एक उदाहरण पर्याप्त होगा । -तुलसीदास स्पष्ट ही राम के पिता को 'दसरथु' कहते थे | क्योंकि यह उनके लिखने की प्रणाली है, पर ... आधुनिक संपादक संस्कृत 'दशरथ लिखते हैं, जैसा कि यह आजकल भी नहीं .. बोला जाता । पर प्राप्त प्रति में दूसरी और इनसे बड़ी अशुद्धियों हैं। यह छूटों .. से भरी है, कभी कभी पूरे के पूरे पृष्ठ छूट गए हैं। छोटे छोटे परिवर्तन तो . प्रत्येक पृष्ठ पर हैं। संक्षेप में, २३ पंक्तियों के पृष्ठ में, मूल से मिलाने पर मुझे कम से कम ३५ से कम प्रमुख परिवर्तन नहीं मिले हैं। अत: मुझे यह लिखते समय परम हर्ष हो रहा है कि पटना के एक साहसी प्रकाशक (बाबू रामदीन- सिंह, खड्ग विलास प्रेस, बाँकीपुर) उन पुरानी प्रतियों के आधार पर, जिनका . .. १. विलो की पत्ती का तल भाग उज्ज्वल होता है, अतः, उसकी जल-छाया भी उज्ज्वल होती है। . .