पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१४७

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( १३६ ) छठे अध्याय का परिशिष्ट . . .. . १. तुलसीदास का पाठ पिछली शताब्दियों में तुलसीदास का पाठ निरंतर किस प्रकार बदलता रहा है, यह दिखाने के लिए, नीचे लिखे हुए अंश रामायण से दिए जा रहें । हैं, जो प्राचीनतम उपलब्ध प्रतियों के पाठ के अनुसार हैं । पाद-टिप्पणियों में अच्छे मुद्रित संस्करणों के पाठ-भेद दिए गए हैं। ये हस्तलिखित प्रतियों वही हैं जिनका उल्लेख अध्याय ६ में हुआ है, अर्थात् अयोध्या कांड की राजापुर । वाली प्रति, जो कि स्वयं कवि के हाथ की लिखी हुई कही जाती है और बनारस की प्रति, जो उनकी मृत्यु के केवल २४ वर्म बाद लिखी गई थी। . बालकांड से (बनारस प्रति ). (पाद-टिप्पणियाँ प्राप्त ग्रंथों के पाठांतर हैं ). चौपाईको शिव समं रामहि प्रिय भाई।। दोहा-प्रथमहि मैं कहि शिव चरित | बूझी मरमु तुम्हार।। सुचि सेवक तुम्ह राम के | रहित समस्त विकार ।।१०४५ चौपाई-मैं जाना तुम्हार गुन सीला । .. कहीं सुनहु अब रघुपति' लीला ।। सुनु मुनि आजु समागम तोरे ।। कहि न जाइ जसं सुखुष मन मोरें११॥ .. .. . . रामचरित अति अमित मुनीसा । . ... ... .. कहि न सकहि१२ सत कोटि अहीसा ।। ... । . , तदपि जथा :श्रुत१३ कहीं बखानी । ... । सुमिरि गिरा पति :प्रभु धनुपानी ।। सारद दारु नारि सम स्वामी। रामु१४ . सूत्रधर .. अन्तरजामी। . जेहि पर कृपा करहि जनु'" जानी। .... कवि उर अजिर नचावहि१६ वानी ।। १. सिव २. रामहिं ३. प्रथम कहे मैं मिवचरित चूमा मरम तुम्हार ४. तुम ५. ११२, ६. मैं . सुनहे म. तोरे ६. जय १०, सुख ११. मोरे १२. सकहिं १३. लुत १४. राम १५. करहिं न १६. नचावधिं --एक प्रति में ‘वानी' के लिए अनी' है। ।