पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१४९

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( १३८ ) सुकृत सील सुख सीव सुहाई ।। जनम लाभ कइ अवधि अघाई ।। दोहा-जेहि चाहत नर नारि सब | ..अति आरत एहि, भाँति ।.. जिमि चतिक चातकि त्रिखित .: वृष्टि सरद, रितु ' स्वाति ॥५२॥ चौपाई-तीत जाउँ बलि वेगि नहाहू७ ।। जो : मन : भाव मधुर कछ खाहू ।।। पितु समीप तच जायेहु भै ।। .भइ बढ़ि बार जाइ बलि मै ।।। सातु वचन सुनि अति अनुकूला । जनु सनेह सुरतरु के फूला ।। मुख मकरंद भरे श्रिय मूला ।। निरखि राम सनु भवरु११' न भूला ॥ धरम१२ धुरीन धरम१३ गति जानी।। कहे सातु सन अति मृदु वानी ।' पिता दीन्ह मोहि कानन राजू । जहँ सब भाँति मोर बढ़१४ काजू ॥ येसु देहि१५ मुदित मन माता । जेंहि१६ मुंद मङ्गल फानन जाता ।। जनि सनेह बस डरपसि, भोरे १७ ।। आनंद अंब'८ अनुग्रह. तोरें१६। दोहा--बरख° चारि दस बिपिन बसि ... करिः पितु बचन' अमान । आइ१ : . पाय पुनि देखिहौ। .., मनु जनि करसि मलान ।।५३।२३ चौपाई-वचन बिनीत मधुरः रघुवर के ।

, सर सम लगे. मातुः : उर करके । ।

१. सीव २. जनम लाभ कहि (-या लहि) अवय ३. इहि ४.चातकिचातक पित ५. ऋतु ६, ५१. ७. अन्हाहू ६, बड़ि ९. यहाँ प्रति का २६ वाँ पन्ना समाप्त होता है । • १०. श्री ११. राम मन भंवर १२: धर्म १३. धर्म: १४, वड़ १५. आयसु देहु १६. लेईि १७: मोरे १८. आनंद मातु १९. तोरे २०. चखें २१. आय २२, मन २३.५२ . . .,.,,.