पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१५१

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। ( १४०) बहुरि समुझि तिय धरमु सयानी । रामु भरतु दोउरे सुत सम जानी॥ सरल सुभाउ ... राम महतारी।। बोली · बचन धीर धरि भारी॥ तात जाउ बलि कीन्हेहु नीका। पितु आयेसु५ सब धरम का टीका ।। दोहा--राजु देन कहि दीन्ह बनु मोहिं न सो दुख लेस । तुम्ह११ बिनु भरतहि भूपतिहि, . . प्रजहि प्रचंड कलेस ॥५५॥१२ चौपाई-ौं। 3. केवल पितु आयेसु१४ ताता। तो जनि जाहु जानि बर्बाढ़ माता ॥ जौ१६ पितु मातु कहेउ१७ बन जाना। तो कानन सत अवध समाना।। पितु बन देव मातु बन देवी। खग मृग चरन सरोरुह सेवी॥. अंतहु उचित नृपति बन बासू। बय बिलोकि हिय होइ१८ हरासू॥ बढ़ भागी बनु२० अवध अभागी। जो२१ रघुबंस तिलक तुम्ह२२ त्यागी॥ ज२३ सुत कहाँ संग मोहि लेहू ।। तुम्हरे हृदय होइ :: संदेहू॥ पूंत २४. परम प्रिय तुम्ह२५ सबही के। प्रान प्रान के जीवन : जी के ॥ ते तुम्ह२६. कहहु मातु बन जाऊँ। . २७. सुनि बचन बैठि पछिताऊँ॥ दोहा---एहि.२८ बिचारि नहि२९ करौं हठ, . झूठ सनेहु बढ़ाइ3 । . १. धर्म २.राम भरत द्वौ ३. सुभाव ४. कीन्हेउ ५. आयसु ६: धर्म के ७. राज ८, कहाँ ६. पन १०. मुहिन सोच ११. तुम १२. ५४. १३, जौ १४, आयस १५. जाई बलि माता १६. जौ १७. कहै १८ होत १९. बड़ २०, बन २१, जौ २२. तुम २१. जो २४. पुत्र २५: तुम २३. तुम २७. मैं २८. यह २६. नहिं-यहां प्रति का तीसवाँ पन्ना समाप्त होता है।३०. सनेह महार .