पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१६२

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| अध्याय ७ । । रीति काव्य । ( १५८०-१६९२. ई०), ". सोलहवीं शती के अंतिम काल एवं संपूर्ण 'सत्रहवीं शती ने, जो मुगल साम्राज्य के आधिपत्य काल का प्रायः संगती है, काव्य प्रतिभा की एक असाधारण श्रेणी ही प्रस्तुत कर दी है। इस युग के अत्यंत प्रमिद्ध' कवि जिनका विवरण पहले नहीं आया है, केशवदास, चिंतामणि त्रिपाठी और बिहारीलाल हैं। केशव और चिंतामणि काव्यशास्त्र लिखनेवाले उस कवि-संप्रदाय के सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रतिनिधि हैं, जिसकी स्थापना केशव ने की और जो काव्य- कला के शास्त्रीय पक्ष का ही निरंतर विवेचन करता रहा। इस अध्याय में इसी वर्ग का विवेचन होगा । अगले अध्याय में सत्रहवीं शती के शेष कवियों का विवरण रहेगा । १३४. केशवदास सनाढ्य मिसर--बुंदेलखंड वासी । १५८०ई० में उपस्थित काव्य निर्णय, सुन्दरी तिलक, सत्कविगिर विलास, राग कल्पद्रुम । इनका असली घर टेहरी था, लेकिन यह उरछा के राजा मधुकर साह के यहाँ गए और अत्यधिक प्रशंसित हुए। बाद में मधुकर के पुत्र राजा इंद्रजीत ( संख्या १३६ ) ने इन्हें २१ गाँव दिए, इस पर यह और इनका परिवार अंतिम रूप से उरछा में बस गया । यह पहले भाषा कवि हैं जिसने [ कवि प्रिया ( राग कल्पद्रुम) में, जिसका बाद के कवियों ने प्रायः अनुकरण किया है ]. दशांग काव्य का विवेचन किया। इनका प्रथम महत्वपूर्ण ग्रंथ विज्ञानगीता है, जिसको इन्होंने मधुकर साह के नाम पर लिखा । तब इन्होंने अबीनराय पातुरी ( संख्या १३७ ) के लिए कवि प्रिया लिखी । तदनंतर राजा इंद्रजीत के नाम पर. रामचंद्रिका' (रोग कल्पद्रुम )। इन्होंने साहित्य संवैधी पांडित्य पूर्ण • रसिक प्रिया’ ( राग कल्पद्रुम ) और पिंगुल संबंधी 'राम अलंकृत मंजरी नामक ग्रंथ भी लिखे ।। कवि प्रिया पूर : टीका लिखनेवाले हैं।—( १ ) सरदार. ( संख्या ५७१ }, (२) नारायण राय ( संख्या ५७२), (३) फालको राव ( संख्या ६७८ ) (४) हरि ( संख्या ७६१ ) । | राम चंद्रिका पर टीका लिखने वाले हैं:----(१) 'जानकी प्रसाद ( संख्या ५७७), (२) धनीराम ( संख्या ५७८) ।।