पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१६४

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राग कल्पद्रुम । यह धीरज नरिंद नाम से कविता लिखते थे.। केशवदास सनान्यः मिसर (संख्या १३४) और प्रवीणराय पातुरी-(संख्या १३७) इनके दरबार में थे। इन्होंने अकबर बादशाह के साथ जो दुस्साहस दिखलाया था, उसके विवरण के लिए, इन नामों को देखिए। . . . टि०---इंद्रजीत कहीं के राजा नहीं थे। मधुकरशाह के आठ पुत्रों में से यह तीसरे थे ।' मधुकरशाह के देहावसान के अनंतर, सं० १६४९ में बड़े पुत्र रामसिह राजा हुए और शेष को जागीरें मिलीं। इंद्रजीत सिंह को कछौआ की जागीर मिली थी। यह रामशाह के कृपापात्र होने के कारण प्रायः ओरछा में ही रहा करते थे। -सर्वेक्षण ३८५ १३७. परवीन राइ पातुरी-उरछा, बुंदेल खंड की वार वधू, १५८० में उपस्थित । केशवदास ने अपनी कवि प्रिया इसी मंगलामुखी के नाम पर लिखी और इसके समर्पण में उसकी भूरि भूरि प्रशंसा की है । इसने कई लघु कविताएँ रची हैं, जिनके लिए इसकी अच्छी प्रशंसा है। यह राजा इंद्रजीत (संख्या १३६) के दरबार में थी । इसकी प्रशंसा सुनकर बादशाह अकबर ने इसे अपने दरवार में बुला भेजा । इंद्रजीत ने इसे भेजने से इनकार किया, जिस पर विद्रोह के अभियोग में अकबर ने इनपर १ करोड़ रुपया जुरमाना ठोंक दिया । केशवदास अंकबर के दरबार में गए और बीरबल (संख्या १०६) से मिलकर जुरमाना माफ़ कराया। परन्तु प्रवीणों को दरबार में जाना पड़ा और अपनी काव्यकला, विद्या और प्रतिभा का प्रदर्शन करने पर वापस आने की आज्ञा उसे मिल गई। शिवसिंह ने इस संपूर्ण प्रसंग का काव्यमय वर्णन किया है। १३८. बाल क्रिशन त्रिपाठी-१६०० ई० में उपस्थित । . “यह नलिभद्र के पुत्र केशवदास के भतीजे और काशीनाथ के भाई थे। यह ‘रस चंद्रिका' नामक एक अच्छे पिंगल ग्रंथ के रचयिता हैं। बालकृष्ण नाम के एक और कवि हैं जिनका कोई विवरा सुन्ने विदित नहीं। हिं०-~-बालकृष्ण त्रिपाठी वलभद्र त्रिपाठी के पुत्र और काशीनाथ त्रिपाठी के भाई थे। सरोज में इन्हें सं० १७८८ में उ० कहा गया है। ग्रियर्सन का संवत अशुद्ध है। यह बलभद्र मिश्र के पुत्र और देशवदास मिश्र के भतीजे नहीं थे । केशव और बलभद्र' स्वयं काशीनाथ मिश्र के पुत्र थे। इनके किसी पुत्र का नाम काशीनाथ संभव नहीं। 'रस चंद्रिका' उपलब्ध है। यह रस ग्रंथ है, न कि पिंगल अंध। सर्वेक्षण ५५५ | दूसरे बाळकृष्ण सरोज ( सर्वेक्षण ५५६ ) के आधार पर उल्लिखित हैं।