पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१६६

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| ( १५५ ).. : टि०-~-सरोज में नखशिव के रचयिता हरीशस को प्राचीन कह कर इन्हें सं० १६८० मैं उ० कहा गया है। --सर्वेक्षण संख्या ९९१ . पिंगल वाले हरीराम का समर्थ १७०८ दिया गया है । इनका छंद रावली नामक पिंगल ग्रंथ सं० १७९५ में डीडवाना, जोधपुर से रचा गया था। इनका नाम हरीरामदास है। यह निरंजनी संप्रदाय के थे । हो सकता है इन्हीं हरीरामदास निरंजनी ने नखशिख भी दिखा रहा हो । --सर्वेक्षण संख्या ९६४ १४२. सुंदरदास कवि-ग्वालियर के ब्राह्मण | १६३१ ई० में उपस्थित ।। काव्य निर्णय, सुंदरी तिलक | यह बादशाह शाहजहाँ के दरबार में थे ! पहले इन्हें कविराय' की तदनंतर ‘महा कविराय' की उपाधि मिली थी । इनकी प्रमुख ग्रंथ साहित्य संबंधी है, जिसका नाम सुंदर श्रृंगार' है और जिसमें नायिका भेद है । यह सिंहासन बत्तीसी ( राग कल्पद्रुम) के एक ब्रज भाषा अनुवाद के भी कर्ता हैं । यही लल्लू जी लाल के उक्त ग्रंथ के हिंदु- स्तानी अनुवाद का मूल आधार है। इन्होंने ज्ञान समुद्र नामक एक दार्शनिक ग्रंथ भी लिखा है । गास द तासी ( भाग १, पृष्ठ ४८२ ) के अनुसार यह सुन्दर विद्या’ नामक एक और ग्रंथ के भी रचयिता हो सकते हैं । पुनश्चः- . . सुन्दर श्रृंगार की तिथि सं० १६८८ ( १६३१ ई० ) दी गई है। दि०-सिंहासन बत्तीसी की वह ब्रजभाषानुवाद जिसका सहारा लल्लू जी लाल ने लिया, संभवतः इन्हीं सुन्दर दास का किया हुआ है। ज्ञान समुद्' दादू के शिष्य संत सुंदरदास की रचना है। तीसी द्वारा उल्लिखित ‘सुंदर विद्या के सम्बन्ध में कुछ कहना संभव नहीं । –सर्वेक्षण ८७६,

  • १४३. चिंतामणि त्रिपाठी-टिकमापुर, जिला कान्हपुर के | १६५० ई०

में उपस्थित ।। . काव्य निर्णय, सुत्कविगिराविलास । यह भाषा साहित्य के बड़े आचार्यों में गिने जाते हैं। दोआब में यह दंत कथा है कि इतके पिता बराबर देवी के मंदिर में दर्शन-पूजनार्थ जाया करते थे। मंदिर अब भी टिकमापुर से एक मील की दूरी पर दिखाया जाता है। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन । देवी प्रकट हुई और चार नरमुण्ड उन्हें दिखाकर बोलीं कि ये चारों तेरे पुत्र .