पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१६८

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( १५७ ): प्रारम्भ में यह ६ महीने तक परना [:पन्ना ! के राजा छत्रसाल (संख्या १:९७ ) के दरबार में रहे । तदनन्तर यह सितारों के शिवराज सुलेको के यहाँ गए, जहाँ इनकी बहुत सन्मान हुआ और अपनी , कविताओं के लिए इन्हें अनेक बार अत्यधिक पुरस्कार मिले। एक बार तो इन्हें ५:हाथी और २५ हजार रुपए केवल एक छन्द पर मिले थे । अपने ढंग की कविताओं में इनकी शिवराज पर लिखी कविताएँ सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं । इस राजा से पुरस्कृत हो यह घर लौटे। रास्ते में यह परना होते हुए आए। यह सोचकर कि शिवराज . के इतना मैं कवि को दे नहीं सकती, छत्रसाल ने रुपया देने की अपेक्षा, इनकी पालकी में अपनी कंधा लगा दिया ! यह घटनों कवि के मुख से सद्यः निःसृत कुछ बहुत ही प्रसिद्ध छन्दों का कारण है । कुछ दिनों घर पर रहने के अनन्तरे, शिवराज की प्रशंसा करते हुए, यह सारे राजपूताना. में घूमे । अंत में यह कुमाऊँ पहुँचे और वहाँ के राजा की प्रशंसा में एक कवित्त पढ़ा । राजा ने सोचा कि भूषण पुरस्कार पाने की लालच से आए हैं और शिवगंज द्वारा प्रदत्त संपूर्ण वैभव की कहानी सारी की सारी कोरी गये है। अतः उन्होंने हाथी घोड़े और रुपये की एक अच्छा पुरस्कार दिया । इस पर भूषण ने जवाब दियां, “इसकी अत्रे भूख नहीं। मैं तो यह देखने आया था कि शिवराज की 'कीर्ति यहाँ तक पहुँची है अथवा नहीं। | इनके प्रमुख ग्रंथ हैं--(१) शिवराज भूषणः(२) भूषण हजारा (३) भूषण उल्लास, और.(४) दूषण उल्लास । कालिदास के हजारों में इनकी सभी रसों में कुल ७० कविताएँ हैं। पुनश्च :--- ५ मतिराम त्रिपाठी ( संख्या १४६) की एक लघु कविता से ज्ञात होता है। कि कुमाऊँ के राजा का नाम उदोतचंद था | १४६. मतिराम त्रिपाठी-टिकमापुर जिला कान्हपुर के। '१६५०-१६८२ ई०'. | के लगभग उपस्थित थे।. ... ..... .. काव्य निर्णय, राग कल्पद्रुम, सुंदरी तिलक, सत्कविगिराविलासः । गृह चिंतामणि त्रिपाठी (संख्या १४३.) के भाई थे। यह एक. दरबार से दूसरे दरबार में जाते रहे और भ्रमणशील, जीवन बिताते रहे ।। इनके श्रेष्ठतम ग्रंथ हैं--(१) ललित ललाम-अलंकार संबंधी ग्रंथ, जिसको इन्होंने बूंदी के राव भावसिंह ( १६५८-१,६८२ ई०; देखिए, टाद, भाग २, ' पृष्ठ ४८१; कलकत्ती संस्करण भाग २, पृष्ठ ५२७) के नाम पर लिखा । ' १. यह कवि के नाम ‘भूषण' पर श्लेष ( Pun:) है । -