पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१७१

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ग्रंथ के भीतर दी हुई तिथि से इनका मेल खा जाता है। मैं शिवसिंह के इस कथन को अस्वीकार करने को तत्पर हूँ कि यह कवि छत्रसाल के दरबार में था और मैं इसे संख्या ५१८ के पश्चात् रक्तूंगा तथा १८३० ई० के.. आसपास उपस्थित मानूँगा 1 इनका सम्बन्ध ५१९ संख्या वाले रतनेश से एक : खुली बात रहनी चाहिए। रतन नाम का एक कवि भी हुआ है। देखिए: सं० १५५ ।। टि०-प्रताप साहि बन्दीजन थे। यह चरखारी के राजा विक्रम साहि और रतनसिंह के दरबार में थे । इनके पिता का नाम रतनेश था, जो कहीं के राजा महाराजा नहीं थे, सामान्य वन्दोजन कवि थे । इनका रचनाकाल सं० १८८२-९६ वि० है। भाषाभूषण, जिसकी टीका प्रतापसाहि ने की, जोधपुर नरेश महाराज जसवंत सिंह का ही है। "विज्ञार्थ कौमुदी' का. असल नाम 'व्यंगार्थ कौमुदी' है। .. -सर्वेक्षण ४४८... १५०. स्त्रीपति कवि-पयागपुर, जिला बहराइच के जन्म १६४३ ई०।। सूदन, सुंदरी तिलक । यह भाषा साहित्य के आचार्यों में गिने जावे. हैं। इनके सर्वाधिक प्रसिद्ध ग्रंथ हैं-(१) काव्य कल्पतरु, (२) काव्य सरोज, (३) श्रीपति सगेज। टि-श्रीपति कालपी के रहने वाले थे। श्रीपति सरोज और काव्य सरोज एक ही ग्रंथ के दो विभिन्न नाम हैं। इस ग्रन्थ का : रचनाकाल सं० १७७७ वि० है, अतः नियसन का दिया समय भ्रष्ट है । सरोज में इनके ग्रंथ का नाम काव्य कल्पद्रुम' दिया गया है, न कि 'काव्य कल्पतरू'। -सर्वेक्षण ८६५ १५१. सरस्वती कवीन्द्र-बनारस के ब्राह्मण, १६५० ई० में उपस्थित । ...यह संस्कृत साहित्य के पंडित थे और बादशाह शाहजहाँ (१६२८-१६५८ ई०.) की प्रेरणा से यह भाषा में भी कविताएँ लिखने लगे थे। इनका इस प्रकार का प्रमुख ग्रन्थ है 'कवींद्र कल्प लता, जिसमें दारा शुकोह और वेगम साहिबा की प्रशंसा में अनेक कविताएँ हैं। १५२. सिवनाथ कधि-बुन्देलखंडी, १६६० ई० में उपस्थित ।. __यह परना ( पन्ना ) के राजा छत्रसाल (संख्या १९७ ) के पुत्र राजा जगतसिंह बुन्देला के दरबार में थे और इन्होंने रसरंजन नाम का एक काव्य ग्रंथ लिखा है । यह शिवसिंह द्वारा वर्णित विवरण हैं। लेकिन टार्ड के अनुसार छत्रसाल बुन्देला के जगत नाम का कोई पुत्र नहीं था। देखिएः .