पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१७३

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( १६२ ) टि०-रतन बुन्देलखण्डी का समय एकदमः अशुद्ध है। इनके आश्रय- दाता सभा साहि का शासन काल सं० १७९६-१८०९ वि० है । यह समा. साहि के पुत्र हिन्दूयत ( शासनकाल सं० १८१३-३४ वि०) के भी आश्रित थे। इन्होंने सं० १८१७ में हिन्दूपत के लिए अलंकार दर्पण नामक ग्रंथ लिखा। .. --सर्वेक्षण ७६७. . फतहसाह के दरबारी रतन कवि से यह भिन्न हैं । फतहसाह न तो बुन्देला थे और न बुन्देलखण्ड के किसी भूखण्ड के शासक ही। यह गढ़वाल के अन्तर्गत श्री नगर के शासक (सं० १७४१-७३ वि०) थे। .. सर्वेक्षण ७६६ १५६. मुरलीधर कवि-जन्म ( १ उपस्थिति) १६८३ ई०। __ हजारा, सुंदरी तिलक । यही संभवतः राग कल्पद्रुम के मुरली कवि और शिवसिंह द्वारा बिना तिथि दिए हुए श्रीधर (सं० १५७) के साथ संयुक्त कवि विनोद नामक पिंगल ग्रंथ के सह-रचयिता के रूप में वर्णित 'मुरलीधर कवि' भी हैं। . .... ............

  • टि०---यह मुरलीधर संरोज सर्वेक्षण के ६५८ संख्यक कवि हैं, जिनको

वहाँ सं० १७४० में उ. कहा गया है। इनकी रचना हजारा में है, अतः सं० १७४० या १६८३ ई० इनका जन्मकाल कदापि नहीं हो सकता। यह उपस्थिति काल है। यह मुरलीधर और श्रीधर दो भिन्न व्यक्ति नहीं हैं। कवि ज्ञा, नाम श्रीधर मुरलीधर ( सरोज सर्वेक्षण ६६८) है । एक व्यक्ति के दो नाम हैं। श्रीधर मुरलीधर ने सं०:१७६९ में 'जंगनाम की रचना की थी। इन्हीं के कवित्त हजारा में थे। अतः यह सरोज के मुरलीधर ( सर्वेक्षण ६५८:) से अभिज्ञ हैं।

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१५७. स्रीधर कवि--१) १६८३ ई० में उपस्थित । .... .. सुंदरी तिलक । कवि विनोद नामक पिंगल ग्रंथाको, मुरलीधर ( संख्या १५६ ) के साथ मिलकर लिखने वाले । • . . . . . . . . . टि०:१५७ संख्यक श्रीधर और १५६ संख्यक मुरलीधर एक ही कवि हैं, सह-श्रमी दो कवि नहीं। १६८३ ई० इनका. उपस्थितिकाल है, इसमें संदेह नहीं। . .. ... .. ... --सर्वेक्षण ८६८ १५८. वारन कवि-भूपाल के । जन्म १६८३ ई०।। यह. राजगढ़ के नवाब शुजाउलशाह के दरबार में थे। भाषा साहित्यकाः 'रसिक विलास' नामक एक बहुत ही बढ़िया ग्रंथ इन्होंने लिखा है।