पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १६३ ). टि-बारन ने रसिक विकास की रचना सं० १७३७ में एवं एक अन्य अंध रत्नाकर की सं० १७१२ में की थी। अतः १६८३ ई. या सं०७४.० । इनका जन्मकालं कदापि नहीं हो सकता । यह उपस्थिति काल हो सकता है। ... .. .. ... .. . -सर्वेक्षण ५६५ -- १५९. कालिदास त्रिवेदी--बनपुरा, दोआब के। १७०० ई० के लगभग उपस्थित । .. काव्य निर्णय, सत्कविगिराविलास। यह दोआब के एक अच्छे और प्रसिद्ध कवि थे। प्रारंभ में यह बादशाह औरंगजेन की. हाजिरी में गोलकुंडा और दक्खिन के अन्य कई स्थानों पर कई वर्षों तक रहे। तदनंतर यह जंबू, के राजा जोगाजीत सिंह रघुवंशी के यहाँ रहे, जहाँ इनके नाम पर 'वधू विनोद नामक साहित्य का. एक अच्छा ग्रंथ लिखाः! इनका सबसे प्रख्यात ग्रंथ एक 'संग्रह है, जिसका नाम कालिदास हजारा है। (मूल ग्रंथ में Haj से संकेतित), जिसमें इन्होंने १४२३ और. १७१८ ई०. के बीच के २१२ कवियों की.१०००. ‘कविताएँ संकलित की हैं। शिव सिंह लिखते हैं कि मैंने अपने सरोज के प्रणयन में इस ग्रंथासे अत्यधिक सहायतो. ली है (जो कि वास्तविकता प्रतीत होती है। आगे वह और लिखते हैं कि इनके पुस्तकालय में इनका एक अन्य सुन्दर ग्रंथ 'जंजीराबंद' भी है। - इनके पुत्र उदयनाथ कवीन्द्र (सं० ३३४ ) और पौत्र दूलह (सं० ३५८ ) दोनों प्रसिद्ध कवि थे। पुनश्च-- . अपने. .वधू विनोद में, जिसका रचनाकाल इन्होंने संवत् १७४९ ( १६९२ ई०) दिया है, वे लिखते हैं कि जोगाजीत के पिता वृत्रि सिंह थे। १६०. सुखदेव मिसर-कविराज, कपिला के। १७०० ई० के आसपास

उपस्थित

काव्य निर्णय, सत्कविगिराविलास, सुन्दरी तिलक । यह भाषा साहित्य के आचार्यों में परिगणित हैं। यह गौड़ के राजा अर्जुन सिंह के पुत्र राजा राजसिंह के दरबार में थे और उन्हीं से इन्होंने कविराज उपाधि पाई । यहाँ इन्होंने 'वृत्तर्विचार नामक पिंगल ग्रंथ रचा, जो कि अपने ढंग के ग्रंथों में सर्वश्रेष्ठ समझा जाता है। यहीं से यह अमेठी के राजा हिम्मत सिंह के यहाँ गए, जहाँ इन्होंने 'छन्द विचार' नामक एक दूसरा पिंगल ग्रंथ लिखा । वहाँ से यह औरंगजेब के मन्त्री फाजिल अली खों के यहाँ गए, जहाँ भाषा साहित्य का अपना प्रसिद्ध ग्रंथ 'फाजिल अली प्रकाश' रचा। (गासी द तासी भाग १,