पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१७६

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. . अध्याय ८.

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... अध्याय . ............." तुलसीदास के अन्य परवर्ती (१६००-१७०० ई०) ..::-..'. : भाग १. धार्मिक कवि : ... [ यथासम्भव कालक्रम से ]:. . १६३. दादू-नरैना, अजमेर के धुनिया । १६०० ई० में उपस्थित । .. 'दादूपंथ के प्रवर्तक । यह अहमदाबाद में पैदा हुए थे, किन्तु अपने बारहवें वर्ष में सैभर पहुँचा दिए गए । अन्त में, यह सौभर से चार कोस दूर नरैना में बस गए, जहाँ इन्हें प्रेरणा मिली.। इनके प्रमुखः ग्रन्थ है-दादू की बानी. और दादूपंथी ग्रंथ। यह अंतिम,; लेफ्टिनेंट जी० आर० सिडन्स द्वारा जर्नल आफ एशियाटिक सोसाइटी आफ़ बंगाल, भाग ६, पृष्ठ ४८० और ७५० में अनूदित होकर प्रकाशित हुआ है। देखिए विलसन, रेलिजस सेक्टस आफ़ द हिंदूज, भागः१, पृष्ठ १०३ और गासी द तासी । इनके एक शिष्य 'सुंदर सांख्या के रचयिता सुंदर थे। बानी में २०,००० चरण है। जनगोपाल लिखित. दादू के जीवन चरित में ३००० पंक्तियाँ हैं । सारे राजपूताना और अजमेर में ५२ शिष्यों ने, इनकी शिक्षा का प्रसार किया। इस प्रकार गरीबदास की कविताएँ और भजन ३२,००० पंक्तियों में है। कहा जाता है कि जैसा (Jaisa)ने १,२४,००० वरण, प्रयागदास ने ४८,०००. चरण, रत्नब जी ने . ७२,००० चरण, बखना. बी ने २०,००० चरण, शंकरदास ने ४,४००. चरण, बाबा बनवारीदास ने १२,००० वरण, सुंदरदास ने १,२०,००० चरण और माधवदास ने ६८,००० चरण लिखे। देखिए, जयपुर के जान ट्रेल द्वारा लिखित 'मेमोरेंडम आन भाषा लिटरेचर', १८८४. ई० । ....... .. ..::दि०दादू का जन्म सं० १६०१ में एवं देहावसानः सं०. १६६० '-हिंदी साहित्य का इतिहास, पृष्ठ ८५, १६४: सुंदरदास कवि-मेवाड़ के । १६२० ई० के आसपास उपस्थित। यह दादू (से०. १६३.) के शिष्य थे और इन्होंने 'सुंदर सांख्य' नामक प्रांतः रस का अंथ लिखा। . .