पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१७८

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( १६७ ) १६८. बोरभान-विजहसीर के । १६५८ ई० में उपस्थित ___ साध संप्रदाय के प्रवर्तक । किसी उदयदास से रहस्यमय ढंग से इन्होंने साध सम्प्रदाय के सिद्धान्त पाए, जिनका इन्होंने प्रचार किया। अन्यों के अनुसार यह जोगीदास के शिष्य थे। इनके अलौकिक गुरु ने जो उपदेश इन्हें दिए, वे कबीर के ढंग के फुटकर सबद और साखी रूप में थे। वे लघु ग्रंथ रूप में एकत्र कर लिए गए और धार्मिक समारोहों के अवसर पर पढ़े जाते है । देखिए, विलसन रेलिजस सेक्टस आफ द हिंदूज, भाग १, पृष्ठ ३५४ और • गासों द् तासी, भाग १, पृष्ठ १२५, १६९. गोविन्द सिंह-श्री गुरु गोविन्द सिंह। जन्म १६६६ ई . - सिक्खों के सैनिक धर्म के प्रवर्तक ! • यह सोढ़ी खत्री जाति के पंजाबी थे और पटना शहर में, आनन्दपुर में पूस सुदी ७, सम्बत् १७२३ (१६६६ ई.) को पैदा हुए थे। इनके पिता गुरु तेग बहादुर थे. जो औरंग- जेब द्वारा दिल्ली बुलाए गए थे और इसलाम स्वीकार करने के लिए इन पर दबाव डाला गया था। तेग बहादुर की मृत्यु १६७५ ई० में ( अगहन सुदी ५, सं० १७३२) हुई। कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने आत्महत्या कर ली, दूसरे लोग कहते हैं कि वह औरंगजेब द्वारा मार डाले गए। जन उक्त बादशाह ने हिन्दुओं पर अत्याचार करना प्रारम्भ किया, गोविन्द सिंह ने अनुभव किया कि वे परमात्मा द्वारा, · इस पृथ्वी पर अत्याचारियों का दमन करने के लिए, भेजे गए हैं । १६९७ ई० के ग्रीष्म में ( चैत सुदी १, सं० १७५४) उन्होंने कठिन तपे प्रारम्भ किया और पंजाब के जिले होशियारपुर में स्थित नैना देवी की पहाड़ियों पर काली देवी को बलि देने लगे। एक साल की तपश्चर्या के अनन्तर, चैत सुदी ९, संवत् १७५५ (१६९८. ई०) को देवी प्रकट हुई और वर माँगने के लिए कहा। उन्होंने कहा, 'देवि, मुझे वर दो कि मैं सदैव सत्कर्म में लगा रहूँ, और जब मैं शत्रु से लड़ने जाऊँ, सदा विजयी होऊँ, कभी डरूँ नहीं।' देवी 'एवमस्तु' कह अन्तर्धान हो गई। ___ अपने शिष्यों को अपने लक्ष्य की सत्यता का विश्वास दिला देने के अनन्तर, उन्होंने न केवल अपनी बल्कि दूसरे कवियों की रचनाओं का भी एक संग्रह. प्रस्तुत किया। यह ग्रन्थ साहिब (सं०.२२) कहलाता है जो चार भागों में है, सभी छन्दोबद्ध :--. (१) सुनीति प्रकाश-नीति .. (२) सर्व लोह प्रकाशनानक ( संख्या २२ ) की रचनाओं की टीका. १. पटना के सिक्ख मन्दिर के ट्रस्टी राय जयकृष्ण का मैं इन सूचनाओं के लिए कृतश हूँ।