पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१८६

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| ( १७३ ) १८५, राजे सिक्क---उदयपुर मेवाड़ के राना । शासनकाल १६५४-१६८१ ई० । . . औरंगजेब के प्रेसिद्ध प्रतिद्वन्दी । ( देखिए, टाड का राजस्थान, भाग १; पृष्ठ ३७४; कलकत्ता संस्करण भाग १, पृष्ठ, ३९६ ):.. एक अज्ञात कवि ने इनके समय का इतिहास राज प्रकाश' नाम से लिखा है । ( टाड, भाग १, पृष्ठ १४ भूमिका, कलकत्ता संस्करण. भाग १, पृष्ठ १३ भूमिका !-) :..::. | (हिं०-सरोज. में ‘राज प्रकाश? के स्थान पर;‘राज विकास' नाम है। जो मान, कवीश्वर की रचना है, जिसका उल्लेख संख्या १८६ पर स्वयं ग्रियर्सन ने किया है। | :::::: :: : :: :: :: :: :.-:सर्वेक्षण ७९७. १८६६ मान कवीश्वर---राजपूताना के. वारण और कवि, ::१६६०, ई० में उपस्थितः । :: :: :: :: :: :.. .:.:::. : :: | मेवाड़ के राना राजसिंह ( सं० १८५) के आदेश से इन्होंने राजदेव विलास लिखा, जिसमें औरंगजेब और राज सिंह के युद्धों का वर्णन है । देखिए, टाड भाग १; पृष्ठ २१४, ३७४ और आगे, तथा ३९१; कलकत्ता' संस्करण - भाग १, पृष्ठ २३१, ३९६::-और-आगे, तथा ४१४ ।' ::.. : :: . १८७. सदासिने कवि--वारण और कवि--१६६० ई० में उपस्थित । • यह औरंगजेब के शत्रु मेवाड़ के राना राजसिंह ( सं० १८५ ) के यहाँ थे और राज रत्नाकर' नाम से अपने आश्रयदाता का जीवन चरित इन्होंने लिखा है. देखिए, दाड भाग १, पृष्ठ २१४, ३७४ और आगे; कलकत्ता संस्करण, भाग १, पृष्ठ २३१, ३९६ और आगे } १८८. जै सिङ्घ---उदयपुर. मेवाड़ के राना । शासनकाल १६८१-१७०० ई० । | यह राना रजिसिंह ( सं० १८५ ) के पुत्र और कवियों के आश्रयदाता थे। इन्होंने एक ग्रंथ बैदेव विलास लिखा है, जो उन राजाओं का जीवन चरित है, जिन्हें इन्होंने जीता था। देखिए, टाड भाग १पृष्ठ १४ भूमिका, २१४ और ३९१-३९४;कलकत्ता सेस्करण, भाग १; पृष्ठ १३ भूमिका, २३१, |... टि-सरोज के अनुसार. इन्होंने जयदेव विकास नाम ग्रंथ वनवाथा, स्वये नहीं बनाया; इससे इन्हीं के वंश के राजाओं के जीवन चरित हैं। इनके । द्वारा पराजित राजाओं के नहीं । .::. :: ....... -सर्वेक्षण २६६ १८९. रनछोर कवि–१६८० में उपस्थित :: :: :: :..- इनकी तिथि संदिग्ध है। यह मेवाड़ के एक चारण' ग्रंथ (Bardic :