पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१८७

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chronicle ) 'राज- पट्टनर के रचयिता थे ।.: देखिए, टाङ: भाग: १, पृष्ठ २८६, भाग २; पृष्ठ: ५९; कलकत्ता सँस्करण भाग १;.:पृष्ठ ३०५, भाग़ः २,,

  • टि-सरोज' में इन्हें ‘सं० १७५० में उ०' कहा गया है।

सर्वेक्षण ७७० १९०. लीलाधर कवि--१६२० ई० में उपस्थित :.:: .. 'यह जोधपुर, मारवाड़ के महाराज गजसिंह (१६२०-१६३८ ई०) के दरबार में थे। देखिए, टाड, भाग २; पृष्ठ ४१; कलकत्ता संस्करण, भाग २ पृष्ठ ४६ । १९१ असर सिङ्-जोधपुर मारवाड़ के | १६३४ ई० में उपस्थित है। - जिन. महाराज सूर सिंह ने एक दिन में ६ कवीश्वरों को ६ लाख रुपया दिया था, ( देखिए, टाङ, भाग २, पृष्ठ ३९; कलकता संस्करण भाग २, पृष्ठ ४३) उनके यह पौत्र थे और कवियों के बहुत बड़े आश्रयदाता,महाराज गजसिंह ( देखिए; सं० १९०) के पुत्र थे. अमर सिंह की प्रशंसा : कवि बनवारी लाल ने की है। यह १६३४ ई० में अपने पिता द्वारा निकाल दिए गए थे और बादशाह शाहजहों के दरबार में चले गए थे। बाद में अपमान का बदला लेने के लिए इन्होंने खुले दरबार में अपने 'अपमान करने वाले को मार डालने का प्रयास किया था। अनेक दरबारियों को मारने के अनन्तर यह स्वयं टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए। देखिए टाड, भाग २ gg:४५: कलकत्ता, संस्करण भाग २, पृष्ठ ४९ । इनकोः मेवाड़ के उन अमर सिंह ( १६०० ई० में उपस्थित, देखिए टाड, भाग १; पृष्ठ ३४६; कलकतों संस्करण, भाग १, पृष्ठ ३७१.) से भिन्न समझना चाहिये, जिन्होंने कंवि: चंद (सं०-६) के ग्रन्थ को एकत्र कराया था । देखिए टाड भाग १, पृष्ठ १३ भूमिका; कलकत्ता संस्करण भाग १, पृ.१२। टि-अमर सिंह के प्रशंसक कवि का नाम 'बनवारी है, बनवारी शाळ नहीं। शाहजहाँ के, साले सलावत ने इन पर जुर्माना कराया था और आँवार कह दिया था। उसकी उन्होंने भरे दरबार में हत्या कर दी थी और और स्वयं घोड़े से कूदकर आगरे के किले के बाहर निकल गए थे। यह मारे नहीं गए थे।" ::.: ::. :: :::::::: ::::::::: सर्वेक्षण ३८ १९२, बनवारी लाल कवि---१६३४ में उपस्थित । । हजार | जोधपुर के राजकुमार अमर सिंह ( सं ०. १९१:) के दरबार में विरुदावली बखानने वाले कवि। ......... .... :::: ": . | ==

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