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अभिव्यंजना प्रणाली तक, ऐसा समझा जाता है कि अभी तक कोई भी कवि नहीं पहुँच सका है। अनेक कवियों ने इनका अनुसरण किया, लेकिन इस शैली में यदि और किसी को महत्वपूर्ण सफलता मिली है तो वह तुलसीदास (सं० १२८) हैं, जो इनसे पहले ही एक सतसई (राम के संबंध में, जब कि बिहारीलाल ने कृष्ण के वर्णन में लिखा है।) १५८६ ई० में रच गए थे। अन्य अच्छी सतसईयाँ विक्रम और चंदन की हैं। बिहारी की कविता, पर अनेक टीकाकारों ने विचार किया है। इसका, काठिन्य और काव्य-कौशल इतना अधिक है कि 'अक्षर कामधेनु' इसके लिए पूर्णतया चरितार्थ होता है। सर्वश्रेष्ठ टीका सुरति मिसर (सं० ३२६) अगरवाला की है। जिस क्रम में आज सतसई मिलती है, वह क्रम शाहजादा आजमशाह के लिए लगाया गया था। अतः यह क्रम आजमशाही क्रम कहलाता है। इसकाः ललित संस्कृत पद्यानुवाद, बनारस के राजा चेतसिंह के आश्रय में पंडित हरिप्रसाद द्वारा हुआ था। इस महान कवि के जीवन के संबंध में बहुत कम ज्ञात है। इनके आश्रय-दाता आमेर के राजा जयसिंह कछवाहा थे। १६०० ई० में राजा मान सिंह आमेर में शासन करते थे और उनके तथा १८१९ ई० के बीच तीन जयसिंह हुए हैं। बिहारीलाल के आश्रयदाता जयसिंह मिरज़ा प्रतीत होते हैं, बहुत संभावना ऐसी ही है। यह मानसिंह के भाई जगतसिंह के पौत्र थे। इस तथ्य की सहायता से हम बिहारीलाल की उपस्थिति १७ वीं शती के पूर्वार्द्ध में, तुलसीदास के परवर्ती रूप में मान सकते हैं। (देखिए टाड का राजस्थान, भाग २, पृष्ठ ३५५, कलकत्ता संस्करण भाग २, पृष्ठ ३९२) गर्सो दे तासी (भाग १, पृष्ठ १२३) इन्हें कबीर का समसामयिक (लगभग १४०० ई०) बना देते हैं। और कहते हैं कि अँगरेज इन्हें भारत को टामसन (Thompson) कहते हैं। वह यह भी कहते हैं कि यह सोलहवीं शती में थे, जो अपेक्षाकृत सत्य के कुछ अधिक निकट है। जिन लोगों ने सतसई पर टीकाएँ लिखी हैं, उनमें से निम्नलिखित लोगों का उल्लेख किया जा सकता है——चंद्र (सं० २०३), गोपालसरन (सं० २१५), सूरति मिसर (सं० ३२६), कृष्ण (स० ३२७), करन (सं० ३४६), अनवर खाँ (सुं० ३९७), जुल्फ़कार (सं० ४०९), यूसुफ़ खाँ (सं० ४२१), रघुनाथ (सं०५५९), लाल (सं० ५६१), सरदार (सं० ५७१), लल्लूजी लाल (सं० ६२९), गंगाधर (सं० ८११), और राय वख्श (सं० ९०७)।

टि०—बिहारीलालका का जन्म सं० १६५२ में हुआ सौर इनकी मृत्यु सं० १७२१ में। यह जयपुर नरेश मिरजा राजा जयसिंह (शासन काल सं०