पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/१९४

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( १८१ ) उक्त संवतु तक यह अनेक ग्रंथ बना चुके थे। इसी साल यह करौली के राजा रतनपाल सिंह के दरबार में गए, जहाँ यह अमरण बने रहे । यहाँ इन्होंने उक्त राजा के नाम से नीति संबंधी एक ग्रंथ 'प्रेमरत्नाकर' नाम का लिखा, जो बहुत ही बढ़िया कहा जाता हैं ।। टि०--प्रेम रत्नाकर नीति सम्बन्धी ग्रन्थ नहीं है, इसमें प्रेम-निरूपण हैं । नीति की कविता करनेवाले देवीदास इनसे भिन्न हैं । —सर्वेक्षण ३६३ २१३. चंद्र कवि--(२), जन्म १६९२ ई० ।। | यह राजगढ़ के नबाब सुलतान पठान के भाई भूपाल के बेदन बाबू के दरबार में थे। इन्होंने बिहारी ( स० १९६ ) की सतसई पर एक टीका कुंडलिया छन्द में सुलतान पठान के नाम से की ।। इस नाम के एक साधारण कवि और हैं । पर शिवसिंह ने उनका कोई • विवरण नहीं दिया है ।। टि–सरोज में इस कवि के विवरण में कहा गया है, “यह कवि सुलतान पठान नव्वद राजगढ़ भाई बंधु भूपाल के यहाँ थे । ग्रियर्सन ने इसका अत्यंत भ्रष्ट अंग्रेजी अनुवाद किया है, जो ऊपर दिए उसके हिंदी अनुवाद से स्पष्ट है । १६९२ ई० इस कृवि का उपस्थिति काल हैं, न कि जन्मकाळ ।। --सर्वेक्षण २१८ २१४. मुहम्मद खान--राजगढ़, भूपाल के सुलतान मुहम्मद खान उपनाम सुल्तान पठान । जन्म १७०४ ई० } यह कवियों के अभियदाता थे और कवि चंद ( २ ) ( सं० २१३ ) ने इनके नाम पर विहारी ( सं० १९६ ) की सतसई पर कुंडलिया छंदों में एक टीका लिखी ।। टि०----१७०४ ई० उपस्थिति का है ।। -सर्वेक्षण २८७ २१५. गोल सरल---राजा गोपाल सरन 1 जन्म १६९१ ई० ।। इनका प्रमुख ग्रंथ विहारी ( सं० १९६ ) की सतसई की प्रबंध घटना नामक टीका है ।। ३१६. मोतीराम-जन्म १६८३ ई० . हुजारा । माधोनल की आख्यायिका के ब्रज भाषा में अनुवाद करने वाले । इसी अनुवाद का अनुवाद लल्लू जी लाल ( सं० ६२९ ) और मज़हर अली खाँ विला ने हिंदुस्तानी में किया था । विशेष विवरण के लिए देखिएगास द तासी, भाग १, पृष्ठ ३५१ ।